माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में बसवा समिति के अध्यक्ष भारत के पूर्व कार्यवाहक राष्ट्रपति श्री बासप्पा दनप्पा जत्ती (बी डी जत्ती) के सुपुत्र श्री अरविंद जत्ती ने *”वचन“* ग्रन्थ को आचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में लोकार्पण करते हुए कहा कि 12वीं शताब्दी के संत बसवेश्वरजी के सर्व समानता के समाज का निर्माण करने की कोशिश में उनके विचारों को 173 शरणों में, दोहों में, कविता में लिखा यह ग्रन्थ हैं| दया के बिना धर्म नहीं है, मुझसे छोटा कोई नहीं, आदि अनेक सारगर्भित वचनों का संकलन है|

श्री जत्ती ने कहा कि अभी भारत वर्ष में स्वच्छ अभियान चल रहा हैं, हम सब उसमें साथ दे रहे हैं| मगर मैने मोदीजी के आगे ही बताया था कि बसवेश्वर जी के दृष्टिकोण से यह अपूर्ण स्वच्छ भारत होगा| वो आश्चर्य में पड़ गए, तब वचनों के द्वारा मैने उनकों उत्तर दिया कि अंतरंग शुद्धि और बहिरंग शुद्धि दोनों का संगम ही दैवत्व का स्वरूप हैं|
वैसे पूरा भारत वर्ष सरकार के द्वारा बहिरंग शुद्धि कर रहे हैं, आचार्य श्री महाश्रमणजी अंतरंग शुद्धि का बहुत बड़ा योगदान कर रहे हैं, हम सब उसके साथ दे, अंतरंग शुद्धि, वह बहिरंग शुद्धि से ज्यादा जरूरी होगा| इसके लिए मैं धन्य हूँ, गुरुजी आप बंगलोर भी पधार रहे हैं| मेरे पिताजी तुलसी आचार्यजी के शिष्य थे, मैं भी आपका शिष्य बनकर ज़िन्दगी में शरणागत के रूप रहने की कोशिश करूंगा|

बंगलूर के श्री रायचन्द खटेड़ ने इस अवसर पर कहा कि तेरापंथ समाज आज जिस मुकाम पर हैं, वह हमारे गुरुओं की कृपा है| वरदान है कि तेरापंथ समाज हर क्षेत्र में उन्नति पर है और मैं थोड़ा बहुत दूसरों के संपर्क में भी हूँ|
मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि, जो मर्यादा, जो अनुशासन तेरापंथ में है, उसकी कोई तुलना कहीं नहीं की जा सकती| यह हमारा सौभाग्य है कि हम इस संघ में हैं| श्री खटेड़ ने आगे कहा कि हम लोग संघ और समाज की बहुत सेवा करते हैं, लेकिन हमें अपने माता – पिता की सेवा भी जरूर करनी चाहिए| देश और समाज में तेरापंथ का उदाहरण हो कि उसके अनुयाई अपने माता-पिता की यथोचित सेवा करते हैं, उन्हें आत्मसमाधी पहुंचाते हैं|
आचार्य श्री ने वचन ग्रन्थ के राजस्थानी भाषा में लोकार्पण पर कहा कि *वचनों में कई वचन ऐसे होते है, उनसे प्रेरणा लेने वाले हो सकते हैं| तो वचन ग्रन्थ को पढ़ने से कोई वचन भीतर पैठ ले, ऐसी प्रेरणा दे दे, ऐसा काम करने वाले होते हैं| ग्रन्थ द्वारा बहुत अच्छी ज्ञान की आराधन हो, जनता में अच्छा धर्म का विकास हो ऐसा प्रयास चलता रहे|
इससे पूर्व भारत के पूर्व कार्यवाहक राष्ट्रपति श्री बासप्पा दनप्पा जत्ती (बी डी जत्ती) के सुपुत्र श्री अरविंद जत्ती द्वारा पूर्व में 22 भाषाओं में प्रकाशित और अभी 23वी राजस्थानी भाषा में प्रकाशित ग्रन्थ *”वचन”* को परम् पूज्य आचार्य श्री महाश्रमणजी के सान्निध्य में लोकार्पित किया गया|

*कथनी करनी में हो समानता*
ठाणं सुत्र के दूसरे अध्याय का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने केवली धर्माराधना के दो प्रकार बताते हुए कहा कि केवली की धर्माराधना अंत: क्रिया करनेवाली होती है|.केवली के चार प्रकार- अवधिज्ञानी केवली, मन:पर्यवज्ञानी केवली, केवल ज्ञानी केवली और श्रुत केवली|
इन चार में से *केवल ज्ञानी अंत: क्रिया करने वाला होते है, यानी जीवन-मरण की परंपरा से मुक्त हो वाले होते हैं ; मोक्षश्री का वरण करने वाले होते हैं| बाकी तीनों देवलोक में जाने वाले होते हैं| आचार्य श्री ने कहा कि साधु को जागरूकता पूर्वक साधना करनी चाहिए, प्रमत अवस्था में दोष सेवन की संभावना हो सकती है|
दोषों का संग्रहण न हो – यह चारित्र आत्माओं का फर्ज बनता है| साधु जीवन का प्रथम कर्तव्य है कि संयम की सुरक्षा करने में जागरूक रहें| पांच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति की अखण्ड आराधना करने वाला साधु शुद्धि को प्राप्त हो जाता है, वह शुद्ध, बुद्ध मुक्त बन जाते हैं| आठ प्रवचन माताओं में शिथिलता आ जाती है, तो महाव्रतों की अनुपालना में शिथिलता आ सकती है|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि लचीलापन जीवन व्यवहार में रहना चाहिए, परन्तु हर जगह लचीलापन काम नहीं आता है, कहीं कहीं पकड़ की बात भी हो सकती है – सयंम रत्न की सुरक्षा में लचीलापन नहीं, दृढ़ता के साथ यथौचित्य पालन करने करने का अभ्यास रहना चाहिए! ईर्या, भाषा, एषणा, आदान निक्षेप, पात्र-उपकरण लेने रखने में, उत्सर्ग समिति में विधि की सम्यक् अनुपालना होनी चाहिए| वोसिरामी-वोसिरामी कहना चाहिए|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि *हम हमारी मूल पूंजी – महाव्रतों की सुरक्षा में पूरी सावधानी बरतें| अच्छा काम करते रहे, ऐसा लक्ष्य रहे, दिखावा नहीं, संयम को अच्छी तरह पालने का रूझान रहना चाहिए| दिखावा, प्रदर्शन-अपेक्षा के अनुसार होना चाहिए, अहं की प्रतिष्ठा के लिए नहीं| जैसा बोलते हैं, वैसा कर दिखाने वाले बनें| कथनी – करनी में समानता हो, वह साधना की दृष्टि के लिए जरूरी होती हैं|* दूरी का अल्पीकरण, संवादिता रहे!
आचार्य श्री ने संवादिता के संदर्भ में एक गरीब ब्राह्मण की घटना बताते हुए कहा कि हमें डफोल शंख नहीं, दक्षीणायण शंख की तरह करनी में समानता रखने का प्रयास करना चाहिए| *हम अपने जीवन व्यवहार में दक्षीणायण शंख की तरह कथनी करनी की समानता वाले बने, डफोल शंख जैसे नहीं|* चौवदस पर हाजरी का वाचन करते हुए साधु समाज के श्रावक समाज को मर्यादा, अनुशासन मय जीवन जीने की प्रेरणा दी|

*एडिशनल इनकम टैक्स कमिश्नर ने किये दर्शन*
चेन्नई के एडिशनल इनकम टैक्स कमिश्नर श्री नन्दकुमार आचार्य प्रवर के श्री चरणों मे पहुंच दर्शन कर आशीर्वाद के साथ पावन पाथेय प्राप्त किया| इस अवसर पर चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री धरमचंद लुंकड़ एवं स्वागताध्यक्ष प्यारेलाल जी पितलिया इत्यादि साथ थे|
*संथारा पूर्वक पण्डित मरण*
*तपस्विनी सुश्री उषा कुमारी डूंगरवाल* (सुपुत्री : स्व. मांगीलालजी डूंगरवाल, बीदासर निवासी रॉयपेट, चेन्नई प्रवासी) ने आज 25-08-2018 शनिवार, प्रात: 07.00 बजे परमाराध्य आचार्य श्री महाश्रमणजी के श्रीमुख से संथारा का प्रत्याख्यान किया| उच्च भावों के साथ प्रात: 07.17 बजे पर उन्होंने संथारे में पंडित मरण का वरण किया।
विशेष ज्ञातव्य :-
*परम् पूज्य आचार्य प्रवर के मंगल सान्निध्य में उन्होंने 15-08-2018 को संलेखना के रूप सिढ़ी तप परिसम्पन्न कर अभी भी वे तपस्या में संलग्न थी| सायं 4 बजे माधावरम् स्थित महाश्रमण नगर से निकली *वैकुंठी यात्रा* में हजारों श्रद्धालु ने सहभागीता निभाई| पुरे मार्ग में जय घोषों, धार्मिक गीतों से वातावरण को आध्यात्म मय बना लिया|
*✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*
स्वरूप चन्द दाँती
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति