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ज्ञान वाणी

कड़वी बोली से उत्पन्न होता है राग-द्वेष: गौतममुनि

कड़वी बोली से उत्पन्न होता है राग-द्वेष: गौतममुनि

चेन्नई. मनुष्य का प्रत्येक कार्य अगर आत्मा से हो तो वह दूसरों को भी आनंद प्रदान करता है। साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने शनिवार को कहा कि जीवन में जिस चीज के करने से आत्मा को शांति और आनंद मिले वही करना चाहिए। दुख देने वाले चीजोंं से दूरी बना कर रखनी चाहिए।

लेकिन गलत भाव से दूसरों में भी राग द्वेष की भावना उत्पन्न होती है। जीवन मेंं कोई भी कार्य करने से पहले मन में सरलता होनी चाहिए। अपने द्वारा कहा हुआ एक भी गलत शब्द दूसरों के मन में राग द्वेष की भावना उत्पन्न कर सकता है। इसलिए मनुष्य को किसी के सामने कुछ भी बोलने से पहले बहुत बार सोचने की जरूरत होती है। किसी को चुभने वाले शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि हमेशा मीठे शब्द का ही प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि एक कड़वा शब्द जीवन भर के रिश्ते को पल भर में खत्म कर सकता है। शब्दों में बहुत ताकत होती है और उस ताकत का सोच समझ कर ही इस्तेमाल करना चाहिए। सागर मुनि ने कहा कि रस्सी बहुत ही कोमल होती है और आसानी से टूट भी जाती है।

लेकिन वही रस्सी कुएं में लगातार पानी खिंचने से पत्थर को भी काट देती है। यह सिर्फ आचरण का ही प्रभाव होता है। मनुष्य को सबकुछ जानना चाहिए, लेकिन आचरण अपने विवेक से ही करना चाहिए। विवेक से किए गए आचरण में दुख नहीं होता है। विवेक आने के बाद ही अंधकार रूपी जीवन से प्रकाश मेंं प्रवेश किया जा सकता है। जेल में पैदा होकर जेल में ही रह जाना दुर्भाग्य की बात है। जेल से महल की ओर बढऩा सौभाग्य की बात है।

इस मौके पर संघ के अध्यक्ष आनंदमल छल्लाणी सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे। मंत्री मंगलचंद खारीवाल ने संचालन किया। कोषाध्यक्ष गौतमचंद दुगड़ ने बताया कि रविवार को उपप्रवर्तक विनयमुनि, गौतममुनि के सान्निध्य में आचार्य सम्राट 1008 आनंदऋषि की 119वीं एवं उपाध्याय केवलमुनि की 106वीं जन्म जयंती तथा महासती कानकंवर की 26वीं पुण्यतिथि मनाई जाएगी।

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