विचारों के आदान-प्रदान का सशक्त माध्यम भाषा होती है। भाषा लिखित भी होती है तो मौखिक भी होती है। बोलना होता है। आदमी मौन भी कर लेता है और बोल भी लेता है, वह कोई खास बात नहीं होती है, किन्तु आदमी बोलते हुए भी मौन कर ले, वह विशेष बात होती है। बोलना कोई बड़ी बात नहीं विवेकपूर्ण बोलना बड़ी बात होती है।
माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में आचार्य महाश्रमण ने ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा के क्रम में मरीचिकुमार के भव सहित सभी सोलहवें भव तक की कथा का वर्णन करते हुए यह कहा। ‘वाणी संयम दिवस पर आचार्य ने कहा कि वाणी एक महत्वपूर्ण तत्व है। आदमी को कटु नहीं मिष्ठभाषी बनने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपनी वाणी को संयमित रखते हुए कठोर अथवा कटु भाषा बचने का प्रयास करना चाहिए। वाणी में विनय हो, वह मिष्ठ हो। भाषा में अच्छे शब्दों का प्रयोग हो तो वाणी और भी सुन्दर बन सकती है। मिष्ठ के साथ भाषा शिष्ट हो तथा शिष्ट के साथ विशिष्ट हो जाए तो वह वाणी विशेष होती है।
वाणी एक रत्न है। वचन दुर्ग है और होंठ दरवाजे हैं। आदमी को सोच-समझकर बोलने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपनी वाणी का संयम रखकर सारगर्भित और यथार्थपूर्ण बोलने के साथ ही यथासंभव मौन भी रहने का प्रयास करे तो वाणी की विशेष साधना हो सकती है। प्रवचन के बाद अनेक श्रद्धालुओं ने अपनी धारणा के अनुसार आचार्य से तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया।