उपरला बखान के माध्यम से दी प्रेरणा
चेन्नई. माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में विराजित आचार्य महाश्रमण ने मंगलवार को ‘ठाणं’ आगमाधारित उद्बोधन में मोक्ष की व्याख्या करते हुए कहा कि मोक्ष एक होता है। मोक्ष की प्राप्ति तब होती है जब आत्मा पूर्णतया कर्मों से मुक्त हो जाती है। समस्त कर्मों का क्षय जब आत्मा कर लेती है तो मोक्ष प्राप्त कर लेती है।
मोक्ष प्राप्त आत्मा जन्म-मृत्यु के चक्र से भी मुक्त हो जाती है। मोक्ष की प्राप्ति होने से पहले केवलज्ञान का होना आवश्यक होता है। मोक्ष प्राप्ति से पूर्व साधक केवल ज्ञानी बनते हैं, उसके उपरान्त ही उनको मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
आचार्य ने कहा जब कोई व्यक्ति क्षीण वीतराग मोह को प्राप्त होती है तो केवलज्ञानी बनने की अर्हता वाला हो जाता है अथवा उसे केवल ज्ञान प्राप्त हो सकता है। क्षीण मोह वीतरागी बनने के लिए राग-द्वेष का क्षय करना होता है। राग-द्वेष का क्षय हो जाए तो आत्मा पूर्णतया निर्मल बन सकती है। ऐसा व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करने वाला हो सकता है। मोक्ष एकान्त सुख वाला होता है।
वहां दु:ख का कोई नामोनिशान नहीं होता। इसलिए आदमी को मोक्ष के मार्ग पर यथासंभव चलने का प्रयास करना चाहिए। मूल मंगल प्रवचन के पश्चात् आचार्य ने उपरला बखान में राजा मुनिपथ का बखान कर श्रद्धालुओं को प्रेरणा प्रदान की।