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उपवास की तपस्या सुखसाता पूर्वक गतिमान

उपवास की तपस्या सुखसाता पूर्वक गतिमान

सूर्यनगरी जोधपुर मे आचार्य भगवन्त पूज्यश्री हीराचन्द्रजी म.सा भावी आचार्य पूज्यश्री महेन्द्रमुनिजी म.सा की असीम कृपा से जोधपुर मे गुरु भगवन्तों के सानिध्य मे श्रदेय श्री जितेन्द्रमुनिजी म.सा के को 52 उपवास आज्ञानुवर्तिनी महासतीजी श्री विमलेशप्रभाजी म.सा के 15 उपवास व महासतीजी श्री निरंजनाश्रीजी म.सा के 7 उपवास की तपस्या सुखसाता पूर्वक गतिमान | भक्ति दिवस प्रवचन के अंश

पावटा, जोधपुर स्वाध्याय भवन मे प्रवचन फरमाते हुए श्रदेय श्री अशोकमुनिजी म.सा ने उतराध्ययन सूत्र के 28 वें अध्ययन मे बताई गई तप की महिमा का विस्तृत वर्णन किया | संलेखना के पांच अतिचारों पर विस्तृत रुप से वर्णन करते हुए फरमाया कि कामना हैं, तो संसार हैं | कर्म को मैं मानना मिथ्यात्व हैं | मैं और मेरा का नाम ही संसार हैं | उपवास का अर्थ आत्मा के समीप वास करना हैं, पर आप, संतो से प्रत्याख्यान तो उपवास के मांगते हैं और करते अनशन हैं | हमेशा सकारत्मकता रखे, अपने लिए नकारत्मकता रखे तो भी सिर्फ एक दिन के लिए ही रखे, जैसे सप्ताह मे एक रविवार का अवकाश रखते हैं |

श्रदेय श्री योगेशमुनिजी म.सा ने सूत्रकृतांग सूत्र के छठे अध्ययन मे वर्णित आर्दकुमार के जीवन चरित्र पर विस्तृत रुप से विवेचना करते हुए फरमाया कि राजा श्रेणिक के मंत्री अभयकुमार द्वारा आर्दकुमार को भेजे उपहार मे सामायिक के उपकरणों को देखकर आर्दकुमार का चिन्तन चला व पूर्वभव का चित्रण मन मस्तिष्क पर छा गया और संयम ग्रहण कर लिया पर भोगावली कर्म शेष रहने कारण चौबीस वर्षो तक संसार मे भटकते हुए रहना पड़ाl

पनः संयम मार्ग मे आरुढ़ होने के भावों से प्रभु महावीर के चरणों मे जाने हेतु निकल पडे | मार्ग मे पांच विभिन्न मतों को मानने वाले गौशालक मत, बौद्ध भिक्षु मत,ब्राम्हणों के मत,सांख्य मत व हस्तिपालक मत के मतावलंबियों ने उन्हें भटकाने का पूर्ण प्रयास किया व अपने-अपने मतों को सही बताया,पर आर्दकुमार ने प्रभु महावीर के द्वारा परुपित शुद्ध जैन धर्म के सिद्धान्तों को अलग-अलग मत वालों के समक्ष रखते हुए जिनशासन की प्रभावना की | जब आर्दकुमार प्रभु के चरणों मे पहुंचे, प्रभु ने शुद्ध धर्म की प्रभावना करने हेतु आर्दकुमार के कार्यों व सम्यक पुरुषार्थ की प्रशंसा की | म.सा ने फरमाया कि सभी श्रावकों को जिनशासन की प्रभावना करने हेतु तत्वों को जानने व समझने मे पूर्ण पुरुषार्थ करना व स्वाध्याय के माध्यम से ज्ञान को बढ़ाने का लक्ष्य रखना चाहिए |

प्रवचन सभा के संचालक श्री गजेन्द्रजी चोपड़ा ने तपस्वी चरित्र आत्माओं की अनुमोदना रुप मे स्तुतियां व भक्ति भावों से ओत-प्रोत गद्य-पद्य से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया | जोधपुर श्राविका मण्डल ने भक्तिमय स्तुतियों को प्रस्तुत किया | महासतीजी श्री दिव्यप्रभाजी म.सा ने गुरुभगवन्तो व महासतियों के गतिमान तपस्याओं की अनुमोदना मे सुन्दर भावों की स्तुति फरमाई | भावी आचार्य पूज्यश्री महेन्द्रमुनिजी म.सा ने मांगलिक फरमाई |

इस पावन एतिहासिक प्रसंग पर चेन्नई से श्रावक संघ तमिलनाडु के कार्याध्यक्ष आर नरेन्द्र कांकरिया, अनोपचन्द, संदीप, शांतिलाल, सुमेरचंद बागमार, दौलतमल रंगरुप, सिद्दार्थ चोरडिया, गौतमचन्द, दिलीप मुणोत, प्रकाशचन्द, महावीरचन्द ओस्तवाल, चम्पालाल भंसाली, रतनलाल बोथरा, भागचन्द आबड सहित पाली, धनारी, जोधपुर, जयपुर, जलगांव आदि देश के विभिन्न क्षेत्रो से अनेक श्रद्धालुओं ने पांच-पांच सामायिक की साधना व 11 उपवास,तेले बेले,उपवास आदि विभिन्न तपस्याओं के प्रत्याख्यान किए |

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