चेन्नई. न्यू वाशरमैनपेट जैन स्थानक में विराजित साध्वी साक्षीज्योति ने कहा संत जीवन तो महान है ही, लेकिन गृहस्थ धर्म भी कम नहीं है। यदि गृहस्थ धर्म के अंदर जीना आ गया तो गृहस्थ धर्म की आराधना करते-करते जीव मोक्ष गति पा सकता है।
इससे पता चलता है कि गृहस्थ जीवन किसी भी मायने में कम नहीं है यदि गृहस्थ जीवन में जीना आ गया। गृहस्थ धर्म की आराधना करते -करते जीव मोक्ष प्राप्त कर सकता है। इससे पता चलता है कि गृहस्थ जीवन किसी भी मायने में कम नहीं है। गृहस्थ धर्म की बुनियाद विनय, प्रेम व सहनशीलता पर टिकी होना आवश्यक है।
गृहस्थ जीवन की डोर विश्वास से बंधी हो क्योंकि जहां प्रेम होगा वहां वैर नहीं होगा। जहां विनम्रता होगी वहां अभिमान नहीं होगा तथा जहां सहनशीलता होगी वहां क्षमा का गुण विकसित होता है। इन गुणों से गृहस्थ जीवन को चार चांद लग जाते हैं। विनय, प्रेम, सहनशीलता की आराधना करने वाले का हृदय सरल होकर पवित्र हो जाता है।
कटुता और द्वेष एवं बदले की भावना का अंत हो जाता है। हृदय जितना सरल हो जाता है वहां पर धर्म का वास स्वत: हो जाता है। इसलिए जिस मुकाम पर आप हैं उस मुकाम को ईमानदारी से जी लें।
जिस घर में आप रह रहे हंै उसमें प्रेम रहें और सहनशीलता से जीएंगे तो गृहस्थ धर्म बहुत कुछ देकर चला जाएगा। संचालन मंत्री गौतम मेहता ने किया।