ऊँ माँ चिंतापूर्णी जी के चरणों में अभिनंदन
ऊँ भगवतें वासुदेवायं नम:
गुरुसेवा ऐसा अमोघ साधन है जिससे वर्तमान जीवन आनंदमय बनता है और शाश्वत सुख के द्वार खुलते हैं। वह आनंद जो ईश्वर का आनंद है–ब्रह्मानंद, जिससे बढ़कर दूसरा कोई आनंद नहीं है, उसकी प्राप्ति के लिए आज से शक्तिभर प्रयत्न करेंगे। यह दृढ़ निश्चय, दृढ़ प्रतिज्ञा ध्यान में सहायक है। इसका अर्थ है कि हमको अब जिंदगी भर ध्यान ही करना है।
जिस समय तुम जो काम करते हो उसमें अपनी पूरी चेतना, पूरा दिल लगाओ। लापरवाही से, पलायनवादी होकर, उबे हुए, या थके हुए मन से कार्य न करो। हरेक कार्य को पूजा समझकर करो। तुम बस जिस समय जो भी काम करो उसमें पूर्णतः एकाग्र हो जाओ तो काम करने का आनन्द भी आयेगा और काम भी बढ़िया होगा।
जब विघ्न-बाधाएँ आवे तब ठहाका मारकर हँसो। विघ्न-बाधाएँ उड़ जाएँगी। संसार की भट्ठी में तो समस्याएँ आया करती हैं। पकने के लिए ही संसार-भट्ठी में आना पड़ता है। अब तो हँसते-हँसते सब कष्ट भोगो। दुःख को हँसते हुए भोगने की कला आ गई तो वह दुःख तपश्चर्या बन जाएगा।
जयकारा_माँ_चिंतपुरणी_का
बोल_सच्चे_दरबार_की_जय
जय_माता_दी
जय_मॉं_छिन्नमस्तिका