चेन्नई. आत्म कल्याण के लिए जीवन में स्वाध्याय बहुत ही जरूरी होता है। जो मनुष्य अपने गुरुओं, रत्नाधिक संतों के साथ विनययुक्त आचरण करते हैं वही सच्चे अर्थों में सफलता की ओर बढ़ते हैं। ज्ञानी कहते हैं जो घोड़ा अपने मालिक की इच्छानुसार चलता है वह मालिक को प्रिय लगता है। वैसे ही जो मनुष्य अपने गुरु के बताए मार्ग का अनुसरण करता है वह अपने गुरु को प्रसन्न कर देता है। अपने इस तरह के कार्यो से आवेश और आक्रोश करने वाले गुरु को भी शिष्य शांत कर देता है।
साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा जीवन में स्वाध्याय करने का जब भी मौका मिले करके जीवन को सार्थक कर लेना चाहिए। सौभाग्यशाली मनुष्य सांसारिक कार्यों को छोडक़र परमात्मा की वाणी श्रवण कर स्वाध्याय करने का प्रयास करते हैं।
उन्होंने कहा जो लोग अपने माता पिता के आदेश के अनुसार चलते हैं वे सफल होते है। अपने जीवन में विनय लाने वाले लोग माता पिता के नाम को रोशन करने का कार्य करते हैं। साधु अवस्था के अंदर ऐसे लोग प्रेरणा देने का कार्य करते है लेकिन अविनित लोग माता पिता के दिल को दुखा कर असफल हो जाते हैं। मनुष्य को विनयवान गुणवान बनने का प्रयास करना चाहिए।
ऐसे मनुष्य अपने साधु जीवन के साथ गृहस्थ जीवन को भी सफल कर देते हैं। सागरमुनि ने कहा अगर मनुष्य धर्म की आराधना करेगा तो उसका जीवन बेहतर मार्ग पर बढ़ता रहेगा। संसार रूपी इस सागर को जो अपने अच्छे कार्यों से पार कर जाता है उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। जीवन के अंतिम क्षण भी धर्म की आराधना कर ली जाए तो जीवन बदल कता है। उन्होंने कहा जीवन में जितनी जल्दी समझ आएगी उतना ही जल्दी विकास का मार्ग खुलेगा।
चौमासा का अंतिम महीना चल रहा है इसमें आराधना कर समझ को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। अपने मन को गलत प्रवृत्तियों में जाने से रोकने वालों को सफलता मिलती है। जीवन में उन्हीं को याद किया जाता है जो दया भाव रखते हैं। जीवन को इतिहास बनाना है तो दूसरों के प्रति दया भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। इससे पहले उपप्रर्वतक विनयमुनि ने उत्तराध्यन सूत्र की शुरुआत की, जो दिपावली तक चलेगा, इसमें महावीर की अंतिम देशना सुनाई जाएगी।