चेन्नई. साहुकारपेट स्थित जैन भवन में विराजित साध्वी सिद्धिसुधा ने कहा जो दया करते हैं वो आत्मा के करीब होते हैं लेकिन दया करने से पहले मन के कषायों को दूर करने की जरूरत होती है। कषायों में रह कर दया का काम करना सफल नहीं होता।
धर्म आराधना कर फल की कामना करना ही कषाय होता है। निस्वार्थ भाव से दया के कार्य कर आत्मा के करीब जाना चाहिए। साध्वी समिति ने कहा परमात्मा ने जीवन मे सुख दु:ख से निकल कर मोक्ष के मार्ग पर पहुचने का मार्ग बतलाया है। पुरुसार्थ कर मोक्ष के मार्ग का गठन कर लेना चाहिए। स्वाध्याय करने से मनुष्य की आत्मा के ऊपर के कर्मो के आवरण दूर होते हैं।
प्रत्येक आत्मा में केवल ज्ञान और केवल दर्शन है लेकिन कर्मो के आवरण से वह ढक गया है। स्वाध्याय कर आत्मा से आवरण की परत को साफ किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ज्यादा जरूरी ना हो तो पढ़ाई को नहीं रोकना चाहिए। ज्ञान के कार्य को अंतराय देने से ज्ञान रूपी आत्मा पर आवरण की परत आती है और कर्मो का बंध होता है।
अगर कोई ज्ञान देने वालों के नाम को छुपाने या उसे नीचा दिखाने की कोशिश करता है तो कर्मो का बंध होता है। अगर किसी छोटे बच्चे से भी ज्ञान की बात सीखने को मिले तो उसका नाम नही छुपाना चाहिए। स्वाध्याय का मतलब स्व के अंदर जाकर उसका चिंतन करना होता है। स्व का चिंतन करने से जीवन सफल हो सकता है।
वाचना मतलब किताब को पढऩा और उसे आचरण में उतारना। इससे आत्मा को ज्ञान का बोध होने से अनंत कर्मो की निर्जरा होती है। धर्मसभा में आने पर अगर कुछ सवाल हो तो उसे गुरुओं से पूछो।
जब तक सवाल नहीं पूछोगे जवाब नहीं मिलेगा और वह जीवन में नहीं उतर पायेगा। समाधान उनको मिलता है जो सवाल करना जानते हैं। वाचन और सवाल पूछने के बाद उसे जीवन मे उतारना चाहिए।
परिवर्तन तभी आएगा जब ज्ञान की बातों को बार बार दोहराया जाए। जीवन में बदलाव के लिए स्वाध्याय करने से पीछे नहीं हटना चाहिए। रविवार को सामूहिक श्रावक भिक्षु दया एवं जन्माष्टमी मनाई जाएगी।