विश्व पूजनीय प्रभु श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीश्वरजी महाराज साहब के प्रशिष्यरत्न राष्ट्रसंत, युग प्रभावक श्रीमद् विजय जयंतसेनसुरीश्वरजी म.सा.के कृपापात्र सुशिष्यरत्न श्रुतप्रभावक मुनिप्रवर श्री डॉ. वैभवरत्नविजयजी म.सा. के प्रवचन के अंश
विषय अभिधान राजेंद्र कोष भाग7
~ आत्मा के शुद्ध स्वरूप का लक्ष्य कराती है सिद्ध पद की साधना।
~ जब तक मानव को मैं कौन हूं, उसका सत्य रूप से बोध नहीं होगा तब तक मानव अपूर्ण हीं रहेगा।
~ विश्व में रहे हुए सभी मानवों को भगवान बनने का जन्म सिद्ध अधिकार है।
~ मानव जब मानवता और धार्मिकता के परम शिखर का अनुभव करता है तब वह अवश्य परमात्मा बनता ही है।
~ यह अमूल्य जीवन और देव, गुरु, धर्म तत्व के योग से अनंत ज्ञान, दर्शन, चरित्र वाली चेतना को पाना ही चाहिए।
~ जगत के सर्वजीवों को परमात्मा का अंश मानना वह परमात्मा बनने का प्रथम कदम है।
~ प्रभु महावीर स्वामी ने जगत में रहे मानव, देव, तिर्यन्च, नरक ही नहीं किंतु पानी, अग्नि, वायु, पृथ्वी, वनस्पति के जीव को भी सिद्ध रूप माना था।
~ प. पू. प्रभु राजेंद्र सुरीश्वरजी म. ने 8 अट्ठाई करके आत्मा में रहे परम आनंद, करुणामय सिद्ध भगवंत का अवतरण किया था।
~ नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव से जो सिद्ध भगवंत का ध्यान करता है वह अवश्य सिद्ध होता ही है।
*”जय जिनेंद्र-जय गुरुदेव”*
🏫 *श्री राजेन्द्रसुरीश्वरजी जैन ट्रस्ट, चेन्नई*🇳🇪