Share This Post

ज्ञान वाणी

आत्मा की चिंता करने वाला ही सच्चा साधु: साध्वी धर्मलता

आत्मा की चिंता करने वाला ही सच्चा साधु: साध्वी धर्मलता

चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि सांसारिक बंधनो से मुक्त होकर निर्वाण को प्राप्त होना है तो स्वयं को जानना अनिवार्य है। जिस दिन हम स्वयं को जानना प्रारंभ करते है उसी दिन से हमारे कदम मोक्ष की तरफ बढ़ जाते हैं।

जीवन में मानने की अपेक्षा जानने की प्रवृत्ति रखनी चाहिए। बनाए गए रास्ते पर कोई चल सकता है पर खुद रास्ता बनाकर चलना कठिन है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति में साधु संतो का महत्व है। उन्हें आदर और सम्मान दिया जाता है और गुरु का स्थान भी महत्वपूर्ण है।

सोने को जिस तरह तपा कर और ठोक पीटकर परखा जाता है साधु की परख भी चार तरह से होती है। पहली कसौटी है समता भाव की। साधु को हर परिस्थिति में संयम रखना चाहिए। दूसरी कसौटी है संयम कि साधु को तप और साधना के माध्यम से अपना मन और इंद्रियों पर संयम रखना चाहिए।

मन और इंद्रियों के गुलाम बनकर नहीं बल्कि उन्हें गुलाम बनाकर रखना चाहिए। तीसरी कसौटी है आत्मचिंतन की साधु को हमेशा आत्मा की चिंता रहना चाहिए। आत्मा को छोडक़र शरीर समेत सभी पुद्गल है जो एक दिन साथ छोड़ देंगे। चौथी कसौटी है वैराग्य की।

साधु के जीवन की शुरुआत ही वैराग्य से होती है लेकिन उसे अपने जीवन में वैराग्य के भाव बनाकर रखना चाहिए। इन चार कसौटियों पर खरा उतरने वाला ही सच्चा साधु कहलाता है।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar