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ज्ञान वाणी

आत्मार्थीं ही मोक्ष जाने का अधिकार : आचार्य श्री महाश्रमण

आत्मार्थीं ही मोक्ष जाने का अधिकार : आचार्य श्री महाश्रमण

माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं सूत्र के छठे अध्याय के तेतीसवें सूत्र का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि आत्मावान व्यक्ति के लिए छह चीजें हितकर होती हैं, शुभंकर, कल्याणकारी होती है।

वे है – पहली पर्याय। पर्याय में जो श्रेष्ठ है, उम्र में बड़ा है, आत्म दृष्टिकोण वाला है, आत्मार्थी है, हितकारी हैं, तो उसमें अहंकार नहीं आयेगा। वह सोचेगा, दूसरों को पददर्शन दु, संरक्षण दे सकूं। हमारा जीव कभी बोर की गुठली बनकर न जाने कितनी बार पैरों में रूले है। किस बात का मैं अहंकार करू। कितनी बार नौकर बना, अधीनता में रहा होगा। आत्मवान  कभी गर्वोन्नत नहीं होता। बड़पन के उचित काम करता है, सहयोग करता है। आत्मार्थी के लिए बड़प्पन नहीं।

आंख बन्द होने पर परिवार, समाज, समृद्धि कुछ नहीं*

आचार्य प्रवर ने आगे कहा की दूसरी बात है – परिवार। बड़ा परिवार है, पर जिस दिन आंखें बन्द हो  जाएगी, बड़ा परिवार क्या काम आएगा? मेरा कौन रहेगा? एक कथानक ने माध्यम से बताया कि*आंख बंद होने पर परिवार, समाज, समृद्धि कुछ नहीं है।*बड़ा परिवार है, तो लाभ देता है। आत्मवान के लिए कल्याणकारी होता है। तीसरी बात है – श्रुत। स्वयं के पास ज्ञान हैं, तो दूसरों को देने का प्रयास करें और नया ज्ञान ग्रहण करने का प्रयास करें। चौथी बात है – तप। आत्मवान तप करेगा, तो गुस्सा नहीं करेगा।

उसे अहंकार नहीं होगा। तपस्या कर रहा है, खाना पीना नहीं है, तो ज्यादा से ज्यादा स्वाध्याय करे। तपस्या भी आत्मवान के लिए हितकर हो सकती है। पांचवी बात है – लाभ। आत्मवान को कोई चीज मिलेगी तो वह दूसरों को देगा। वह भी उसके लिए हितकर हो सकता है। छठी बात है – पूजा सत्कार। पूजा सत्कार मिलना पुण्य का योग है, अनुकूलता का उपयोग अच्छे काम में करना है। मेरे भक्त है, उनको अच्छी दृष्टि, अच्छा मार्गदर्शन दूं। वह अच्छे मार्ग पर बढ़ सकता है, यह भी कल्याणकारी हो सकता हैं।*

गृहस्थ वेश वाला भी बन सकता केवलज्ञानी*

आचार्य श्री ने आगे कहा कि आत्मावान हैं, तो अनासक्तवान भी है। हम आत्मवान बने रहने का प्रयास करें। आत्मा की ओर अभिमुख होने वाला, आत्मा का ध्यान करने वाला, अंतर्मुखी दृष्टिकोण वाला अपना कल्याण कर सकता है।*गृहस्थ का जीवन है। गृहस्थ में रह कर भी आत्मवान बन सकते हैं। गृहस्थ वेश में रहने वाला केवलज्ञानी बन सकता है। गृहस्थ वेश में भी साधु जैसा जीवन जिया जा सकता है।*

वेश मोक्ष का मार्ग नहीं हैं, सम्यक दर्शन , ज्ञान , चरित्र  मोक्ष का मार्ग हैं। वेश व्यवहार में है। निश्चय में वेश मोक्ष मार्ग नहीं है| आत्मवान ज्ञान, दर्शन, चरित्र की आराधना करें। अच्छे ग्रंथों का स्वाध्याय करने से अच्छा प्रदर्शन मिल सकता हैं। श्रद्धा सही हो, तो वीतराग प्रभु ने जो कहा है, वह सत्य है, शाश्वत हैं। हमारी श्रद्धा पुष्ट हो। धर्म की, तप और चारित्र की आराधना करते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करें।* अभवी, साधु का वेश पहन ले, ऊपरी तौर पर आचार पाल ले, पर वह आत्मा अनंत अनंत काल तक मोक्ष नहीं जा सकता। मोक्ष भवी ही जा सकता है। आमार्थीं ही मोक्ष जा सकता हैं, हम आत्मवान बन रहे हैं, यह काम्य हैं।

आचार सम्यक्, तो मोक्ष का अधिकारी :  साध्वी प्रमुखाश्री*

साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने कालूयशोविलास का सुंदर वाचन करते हुए फरमाया कि लौकिक अनुकंपा सावद्य और लोकोत्तर अनुकंपा निर्वध हैं।*जहा न तप है, न संयम है, वहां धर्म नहीं हैं। कर्तव्य हो सकता हैं, पर आत्मा के साथ न जोड़ा जाए। गाय का दूध और आकड़े का दूध दूध ही है, पर दोनों में बड़ा फर्क हैं। छठे गुणस्थान वाले मनःपर्यव ज्ञानी में अगर कृष्ण लेश्या है, तो मूल और उत्तर गुण में दोष लगता हैं। मिथ्यात्वी की करणी भी भगवान की आज्ञा में हैं। ज्ञान नहीं है, पर आचरण सम्यक् हैं, तो वह मोक्ष का अधिकारी बन सकता हैं।*

साध्वी प्रमिलाश्री ने आदमी दु:खी क्यों होता है, उसके कारणों का सुंदर विवेचन किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार ने किया। मुनि श्री ध्रुवकुमार ने आज शनिवार को 7:00 से 8 पर सामायिक करने की प्रेरणा दी।

   *✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*

स्वरूप  चन्द  दाँती
विभागाध्यक्ष  :  प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति

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