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आठवा व्रत अनर्थदण्ड है: पुज्य जयतिलक जी मरासा

आठवा व्रत अनर्थदण्ड है: पुज्य जयतिलक जी मरासा

रायपुरम जैन भवन में चातुर्मासार्थ विराजित पुज्य जयतिलक जी मरासा ने बताया कि‌ सात अणुव्रत का विवेचन हो चुका है आठवा व्रत अनर्थदण्ड है। पाप करना पड़ता है किंतु अनावश्यक पाप का त्याग है। जैसे शरीर में नाखुन होते हैं आवश्यकता से अधिक नाखुन को काट दिया जाता है वैसे ही आवश्यक पाप भी करना पड़े ते अनासक्त भाव से करे एवं उन पापों को भी छोड़ने की भावना होनी चाहिए! जितना खुला रखा है उसमें भी कम करने का प्रयास करें। जिससे निकाचित कर्मों का बंध नहीं होता है। विवेकपूर्वक कर्म करो जिससे अल्प से अल्प कर्मबंध हो! सिन्धु से बिन्दु जितना पाप रह जाता है। जिससे अल्प समय में मुक्त होने की संभावना रहती है। बिना प्रयोजन कीसी वस्तु को ठोकर भी नहीं मारना! वाणी से मधुर बोलो, क्लेशकारी वचन बोलने से राग द्वेष बढ़ता है। वाणी का भी सदुपयोग करो। रात्रि के दूसरे प्रहर में जोर जोर से नहीं बोले।

जयंति श्राविका ने भगवान महावीर से पूछा जीव को जागना अच्छा या सोना अच्छा! भगवान ने फरमाया पापी जीव का सोना अच्छा धर्मी जीव का जागना अच्छा! यहाँ माला, जाप, स्वाध्याय भी बिना आवाज के करे! भगवान ने तीन हजार वर्ष वर्ष पहले ही बता दिया किंतु सरकार ने नियम में कहा है 10 बजे रात्री के बाद आवाज नहीं करना ! मन में अशुभ विचार करना अनर्थ दण्ड है। वाणी का प्रयोग सोच समझ कर करो! बिना प्रयोजन सलाह नही देना। गलत उपदेश देना नहीं, पापकारी उपदेश नहीं देना।

व्यक्ति स्वयं तो जमीकंद नहीं खाता किंतु प्रशंसा की चाह में समारोह में जमीकंद वापरते है! जिससे जीवन भर में नहीं होने वाला पाप उसे एक दिन में हो जाता है। शादी ब्याह में डेकोरेशन में सचित वापरते है। जिससे करने वाले कराने वाले और अनुमोदना करने वाले तीनो को पाप कर्मों का बंध होता है।

धर्म की प्रवृत्ति में आवाज नहीं निकलती किंतु पाप की प्रवृत्ति में जोर शोर से आवाज करता है। पापकर्म बंद करने के लिए धन खर्च करता है। प्रवृत्ति में जो हुआ जो हुआ साथ में पाप कर्म का बंध भी हो जाता है धन तो खर्च हुआ जो दिखाई नहीं देता। धर्म संघ ले जाते है किंतु यहाँ पर भी रात्री भोजन, घूमना फिरना आदि करने से भी कर्म बंध होता है! धर्मसंघ में जाते है तो नवकारसी, पोरसी, तप, स्वाध्याय आदि धर्म कार्य करे। शेष कार्य जो संसार के है उससे संसार बढ़ता है! बोटींग, फाल्स आदि में जाकर कर्मबंध करता है। तीर्थ यात्रा, धर्म संघ आदि ले जाये तो धर्म की वृद्धि हो ऐसी बात, कार्य करे, अन्यथा पाप की वृद्धि होती है! मजाक से भी जीव अनंत संसार बढ़ा लेता है अतः बिना प्रयोजन के कार्य कर नहीं करना! बिना प्रयोजन आर्तध्यान नहीं करना!! बिना प्रयोजन चिंतन कर रोना कर्म का उदय होता है। संसार में संयोग वियोग, अच्छा, बुरा सब कुछ होता रहा है। यह जानकारी नमिता स॑चेती ने दी।

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