वेलूर के शांति भवन में विराजित श्री ज्ञानमुनिजी ने दिगवंत आचार्य श्री शुभचंद्रजी म.सा को भाव भीनी श्रद्धाजंली अर्पित करने के बाद कहे कि आचार्य श्री शुभचंद्रजी महाराज वयोवृद्ध अनुभवी सरलमना दीर्घ तपस्वी महान सेवा भावी पुरानी पीढ़ी के महान संत के निधन से जैन संघ की अत्यंत क्षति पूर्ति हुई जिसकी पूर्ति निकट भविष्य में असंभव है। आचार्य श्री सदा प्रसन्न मुख सब के प्रति वात्सल्य से ओत पोत व्यक्तित्व के धनी थे।
इसी कारण सभी सम्प्रदाय के संत उनसे मिलना चाहते थे,उनसे मिलते थे और मिलकर अत्यंत प्रसन्नता का धन्य भाग्य अनुभव करते थे। ऐसे विरल व्यक्तित्व के धनी आचार्य श्री को श्री ज्ञानमुनिजी सहित काफी संख्या में श्रावक व श्राविकाएं भाव भीनी श्रद्धाजंली अर्पित किये। फिर धर्मसभा को संबोधित करते हुए श्री ज्ञानमुनि ने कहे कि धर्म चार प्रकार के होते है-दान,शील,तप व धर्म है। मानव जीवन में सयमं अति अवश्यक है। मन का नियंत्रण करें,इन्द्रियों पर नियंत्रण रखें। जीवन में मनुष्यों को अपने मर्यादा में रहना चाहिए। नदी जब किनारे में रहती है तो ठीक रहती है लेकिन जब नदी किनारा तोड़ती है तो बरबादी लाती है।
इस लिए लोगों को मर्यादा में रहकर कोई अच्छे कार्य करने चाहिए। इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करोंगे तो मन को जीत सकते हो। लोग बोलने में नियंत्रण रखें मनुष्यों को ईश्वर ने दो आखें दिये हैं पर काम एक ही है देखना,नाक दो दिये है लेकिन काम एक ही सांस लेना लेकिन मुंह एक दिये है लेकिन काम दो है बोलना एवं खाना। इस लिए चुभता वचन न कहे,नपा तुला शब्द बोले। खान-पान में ध्यान दें तभी शरीर स्वस्थ रहेगा।