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ज्ञान वाणी

आचार्य का जीवन समता, संयम व साधना  की त्रिवेणी है: साध्वीवृंद धर्मप्रभा

चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वीवृंद धर्मप्रभा एवं स्नेहप्रभा के सान्निध्य में शुक्रवार को आचार्य आनंदऋषि की 119वीं जन्म जयंती मनाई गई।
इस मौके पर साध्वी धर्मप्रभा ने कहा आचार्य का जीवन समता, संयम व साधना की त्रिवेणी है। वचन में माधुर्य, हृदय में कोमलता व करुणा का झरना बहता था।
महाराष्ट्र की धरती पर केवल जैन ही नहीं बल्कि छत्तीस कौम के लोग आज भी उनको भगवान की तरह पूजते हैं। वे जैन और जैनेतर के भगवान थे, उनके आचरण में समग्र विश्व की पवित्रता समाहित थी।

उनके जीवन में भगवान महावीर का अनेकांतवाद, गौतम बुद्ध का करुणावाद, श्रीराम की मर्यादा व वासुदेव कृष्ण के योग के साक्षात दर्शन होते थे।

उन्होंने सदैव तोडऩे में नहीं जोडऩे में विश्वास किया। उनको स्पर्शलब्धि व वचन सिद्धि प्राप्त थी। वे छत्तीस गुणों के धारक, पंचाचार के पालक एवं श्रमण संघ को एकसूत्र में बांधने वाले सफल नायक साबित हुए।

उन्होंने उपाध्याय प्रवर केवलमुनि के बारे में कहा कि वे ऐसे संत थे जिनके जीवन में नियम पालन में कठोरता, व्यवहार में मृदुता व आदर्शमय सिद्धांतों के प्रति दृढ़ता रोम-रोम में बसी हुई थी। वे कलाप्रेमी, ज्ञानप्रेमी व सदैव प्रसन्नचित्त रहने वाले थे।
साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा आचार्य ने समाज के सर्वतोमुखी विकास, कुरीतियों के निवारण के लिए अनेक हितकारी योजनाएं दी। उन्होंने दीर्घकाल तक चतुर्विध संघ का संचालन किया। मात्र 13 वर्ष की आयु में संयम के कठोर पथ पर अग्रसर होकर संयम की लंबे समय तक प्रभावना की।

भारत के अध्यात्म पुरुषों में आचार्य आनंदऋषि का नाम सदा स्मरणीय रहेगा। उनको श्रमण संघ के स्वर्ण कंकण की एक दीप्तिमान मणि की उपमा से उपमित किया गया।

इस मौके पर त्रिशला बहू मंडल, दर्शना महिला मंडल, अनिल डोसी, शंकरलाल पटवा, पेरम्बूर ने गीतिका पेश की। कार्यक्रम में पेरम्बूर, मदुरांतकम, अम्बत्तूर, कोडंगयूर, शेनॉयनगर व अडयार आदि स्थानों से श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया। संचालन सज्जनराज सुराणा ने किया।

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