कांचीपुरम (तमिलनाडु): तमिलनाडु राज्य ही नहीं, अपितु भारत के एक अति प्राचीन नगरी कांचीपुरम् में बुधवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ पधारे तो पूरा नगर ही आचार्यश्री के मंगल संदेशों से गुंजायमान हो उठा। कांचीपुरमवासी अपने आराध्य को अपने नगर में पाकर इतने उत्साहित थे कि उनके चेहरे पर व्याप्त प्रसन्नता उनकी आंतरिक प्रसन्नता का द्योतक बनी हुई थी। भव्य जुलूस के साथ आचार्यश्री नगर स्थित एस.एस.वी.के. मेट्रिकुलेशन हायर सेकेण्ड्री स्कूल के प्रांगण में पधारे।
भारत के सात मोक्षपुरियों में से एक आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित एक पीठ और इक्यावन शक्तिपीठ में से एक पीठ और वाराणसी की तरह ही दक्षिण भारत में मंदिरों के शहर के नाम से अपनी ख्याति को प्राप्त कांचीपुरम में बुधवार को प्रातः से ही एक अलग माहौल बना हुआ था। इसका कारण था जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी आज अपनी धवल सेना के साथ इस नगर में पधारने वाले थे। सारे नगरवासियों के उत्साह देखते ही बनता था। हर कोई ऐसे महान संत के दर्शन को लालायित था।
आसमान में बादल छाए हुए थे। मंगलवार की रात्रि में और बुधवार की सुबह भी हुई बरसात के कारण मौसम खुशनुमा बना हुआ था। आचार्यश्री लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर कांचीपुरम नगर मंे पधारे तो एक अलग ही अलौकिक वातावरण बन गया। सैंकड़ों श्रद्धालु अपने नगर में अपने आराध्य, अपने भगवान के स्वागत को तैयार खड़े थे। आचार्यश्री के नगर प्रवेश करते ही श्रद्धालुओं द्वारा किया गए जयघोष से पूरा नगर गुंजायमान हो उठा। सभी पर समान रूप से आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री भव्य जुलूस के साथ नगर स्थित एस.एस.वी.के. मेट्रिकुलेशन हायर सेकेण्ड्री स्कूल में पधारे।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखाजी ने कांचीपुरमवासियों को प्रेरणा प्रदान की। तत्पश्चात् आचार्यश्री ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को तब तक धर्माचरण कर लेना चाहिए, जब तक शरीर स्वस्थ और इन्द्रिय शक्ति क्षीण न हो जाए। शरीर को एक मंदिर माना गया है और उसमें एक चैतन्य विराजमान है, जो देव के रूप में है। शरीर को एक नौका भी माना गया है। इस संसार को एक समुद्र मान लें तो संसार रूपी सागर को तरने के लिए शरीर रूपी नौका का उपयोग किया जा सकता है। छिद्रयुक्त नौका डूबोने वाली तो निश्छिद्र नौका इस संसार सागर से तरने में सहायक हो सकती है।
आदमी को हिंसा, चोरी, झूठ आदि से बचने का प्रयास करना चाहिए। इनसे बचने से शरीर रूपी नौका निश्छिद्र बनी रह सकती है। आचार्यश्री ने अपने कांचीपुरम आगमन के संदर्भ में कहा कि आज हम कांचीपुरम आए हैं। मानों हम अपने गुरु और नवमाधिशास्ता गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी का अनुसरण करते हुए आए हैं। उन्होंने अणुव्रत की बात बताई थी। इस अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्य भी जीवन में आए तो अणुव्रत के संकल्प आ सकते हैं। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति को अपने जीवन में उतारने का प्रयास हो। आदमी को धर्माचरण के माध्यम से अपने वर्तमान और भविष्य दोनों को अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने उपस्थित लोगों को अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्प भी स्वीकार कराए।
कांचीपुरम तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री डी. मोहनलाल सिसौदिया, मंत्री श्री ललित पिपाड़ा, श्री भरत धोका, श्री प्रकाश धोका, दिगम्बर समाज की ओर से श्री उमेद गांधी, प्रज्ञा धोका, रेखा खटेड़, डाॅ. निकिता आदि ने अपनी आस्थासिक्त भावाभिव्यक्ति कांचीपुरम महिला मंडल, युवक परिषद ने स्वागत गीत के माध्यम से अपने आराध्य की अभिवन्दना की। ज्ञानाशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति के द्वारा श्रीचरणों में अपने भावसुमन अर्पित की। नवनीत और समकित ने गीत का संगान किया।