चेन्नई. जीवन में आचरण का बहुत महत्व है आचरण है तो सब कुछ है। पुस्तक से पढ़ कर विद्या मिलती है लेकिन जब उसे जीवन में उतारते है तो वह ज्ञान बन जाता है। पानी का स्वभाव ठंडा होता है लेकिन आग पर रखने पर गर्म हो जाता है। उसी प्रकार आत्मा शांत होती है पर कषाय आने पर लोभ, मोह और माया में फंस कर दुख झेलती है। साधना और तप से मनुष्य अपने दुखों से उबर सकता है।
साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा देव, गुरु और धर्म जीवन के ऐसे तत्व हैं जिनसे मनुष्य अपने जीवन का उद्घार कर सकता है। इन तत्वों को समझ कर अगर मनुष्य उनके बताए मार्ग का अनुसरण करें तो जीवन सफल हो जाएगा। संयम के प्रति खुद को तैयार रखना चाहिए, क्योंकि संयम से जीवन बदला जा सकता है। इसके साथ ही ज्ञान, ध्यान और तप से जीवन को सजाने का कार्य करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि महापुरुषों का सानिध्य मनुष्य को नए मार्ग पर ले जाता है। धर्म करने से कभी पीछे नहीं हटकर धर्म कार्य में सहयोगी बनने के लिए तत्पर होना चाहिए। साधु वे होते हैं जो आत्म-साधना में तत्पर रहते हैं और आने वालों को भी ज्ञान देने का कार्य करते हंै। खुद के जीवन को परम पावन बनाने के साथ दूसरों को भी यही प्रेरणा देते हैं। सागरमुनि ने कहा परमात्मा ने अपने आचरण से उपदेश देकर जगत के प्रत्येक जीव पर अनंत उपकार किए हैं।
विनयमुनि ने मंगलपाठ सुनाया और आयंबिल तप से जुडऩे की प्रेरणा दी। इस मौके पर उपाध्यक्ष नरेंद्र कोठारी, पंकज कोठारी, मंगलचंद खारीवाल, कोषाध्यक्ष गौतमचंद दुगड़ सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे। श्रीचंद सुराणा किशनगढ़ और देवीलाल पीतलिया बेंगलूरु ने भी विचार रखे। संघ के पदाधिकारियों ने सांडेराव सूरत से आए मोहनलाल भीम साकरिया का सम्मान किया। इससे पहले विनयमुनि और गौतममुनि के सानिध्य में जप, तप और त्याग के साथ युवाचार्य महेन्द्र ऋषि की 51वीं जन्म जयंती मनाई गई।