गुरुवर श्री 108 अरिजीत सागरजी की मंगल देशना की प्रमुख बातें:
पुंनः स्मरण कराते हुए पूज्य गुरुदेव बता रहे हैं भगवान बनने की प्रक्रिया में तप की महत्वकांशा आवश्यक है। चर्चा में अनशन तप की बात को पुंनः दोहराते हुए उसी क्रम में आज अमोधर्य तप का उल्लेख कर रहे हैं। जिसके बारे में समझाते हैं कि भूख से कम खाना ही अमोधर्य तप है।
उपवास रखना आसान है परंतु भूख से कम खाना मुश्किल है। बढ़ते हुए रस परित्याग का जिक्र करते हैं।जिसमें आहार के वक़्त कोई एक रस का त्याग करना होता है। आगे इस संधर्भ में अखेले रहने का अभ्यास करने के बारे में कह रहे हैं।
हम किसी के सहारे नहीं रहे।इस सोच को हम हमेशा ही दिल में रखें।तभी हम सहजता से जीवन में आगे बढ़ सकते हैं। आगे कायक्लेश के बारे में ज्ञान देते हुए कहते है वस्तु के होते हुए वस्तु की कीमत नहीं होती है। इस विषय में साधुओं के बारे में बता रहें हैं।
दिगंबर साधुओं की मनोस्तिथि को लेकर कहते हैं साधुजन हर परिस्तिथी में अपने आप को ढाल लेते हैं। वो कभी गर्मी में रहते हैं। कभी सर्दी में रहते हैं।अपनी काया की चिंता नहीं करते। काया के अनुकूल नहीं रहते।यही कायक्लेश प्रवुर्ति है।
हम सभी श्रावकों को भी ज्ञान देते हुए बताते हैं हमें भी हर प्रवुर्ति में रहना का अभ्यास डालना चाहिए।इन सभी बाहरी तप से तपने से ही जीवन का कल्याण कर सकते हैं। समय का अभाव होने के कारण कल अंतरंग तप के बारे में चर्चा करेंगे बताकर आज के प्रवचन देशना को विराम दिया।
जय जिनेन्द्र!
प्रेम कासलीवाल-पांडिचेरी