चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा जीववाणी मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि आंतरिक सुख देने के लिए होती है। कोई भी कार्य वाहवाही कमाने के लिए नहीं बल्कि आत्मा की निर्जरा के लिए की जानी चाहिए।
भाग्यशाली लोग मन से परमात्मा की वाणी को जीवन में उतारने की कोशिश करते हंै। जीवन की छोटी-छोटी सफलता ही लोगों को आगे बढ़ाती है। इसलिए मनुष्य को उसके हर छोटे कार्य को भाव के साथ ही करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि धर्म और आराधना के कार्य को दिल से ही करना चाहिए। बिना मन के किए गए कार्य का कोई मतलब नहीं होता है।
दिल से किया हुआ कार्य ही मनुष्य को मंजील तक पहुंचाता है। वर्तमान में लोग धर्म के कार्य तो करते हैं पर उनमे भाव नहीं होता। भाव से धर्म करने वाला मनुष्य अपने जीवन को पावन बना लेता है। अगर मनुष्य प्रवचन भी दिल से सुन कर बताए मार्गों पर चले तो उसके जीवन की दिशा ही बदल जाएगी। सागरमुनि ने कहा कि संसार में आकर जो मनुष्य अपना समय सोकर बिताता है वे अंधकार में जाता है।
सोने के बजाय मनुष्य को अपना कीमती पल कल्याण के मार्ग और आचरण करने में लगाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन वैसे तो दुख का पारण है लेकिन इसे अपने अच्छे कर्मो से सुख में बदला जा सकता है क्योंकि धर्म के सम्मुख रहने वाला सदा सुखी होता है।
व्यक्ति को क्रोध, मान, माया और लोभ से बचना चाहिए। क्रोध में बच्चे को पिलाया गया दूध भी जहर बन जाता है, जबकि खुशी में अगर कोई जहर भी दे तो वे अमृत के समान है। इस मौके पर संघ के अध्यक्ष आनन्दमल छल्लाणी सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे।