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अहिंसा और संयम के बिना तप पूर्ण नहीं

अहिंसा और संयम के बिना तप पूर्ण नहीं

परम पूज्य साध्वी श्री महाप्रगना जी के वर्षी तप की अनुमोदना के अंतर्गत नव रसों से परिपूर्ण परम सती मनोरमा सती की नाटक कार्यक्रम का आयोजन रविवार को आदिनाथ जैन सेवा केंद्र में आयोजित किया गया। नाटक कार्यक्रम में संयम रंगशाला एवं सांझी नवरस में मनोरमा अनूठी नाटिका श्री ऋषभ बालिका मंडल द्वारा प्रस्तुत की गयी। इस बालिका मंडल की सचिव रमिला जैन ने बताया कि मनोरमा शेट्टी का निश्चय था कि वह उसी पुरुष से विवाह करेंगे जो नव रसों से परिपूर्ण होगा। क्योंकि जीवन में नवरस ना हो तो जीवन नीरस हो जाता है।

काव्य रस, हास्य रस, रौद्र रस, वीर रस, करुण रस, शौर्य रस, वैराग्य रस एवं शांत रस। मनोरमा सतीश जी अपने उस वीर पुरुष की तलाश में लगी रही अंत में उन्हें वह पुरुष मिलता है जो उन्हें वैराग्य रस में ले जाता है और वह रजोहरण को अपना जीवन समर्पित कर देती है। इस कड़ी को आगे लेकर श्री ऋषभ बालिका मंडल ने परम पूज्य साध्वी श्री महा प्रागना श्री जी के वर्षी तप की अनुमोदना अहिंसा संयम और तप इन त्रिवेणी संगम संगम की आमोद ना कि और समस्त जैन समाज को यह संदेश दिया कि तब के साथ अहिंसा और संयम का भी होना जरूरी है तभी जाकर वह तप पूर्ण होता है। समस्त जुलाई संघ ने इसे दिल से स्वीकारा है।

इस कार्यक्रम में आदिनाथ जैन ट्रस्ट के उपाध्यक्ष डा मनोज जैन, कोषाध्यक्ष संतोष बड़ाडिया, स्थापक राजेंद्र कानूगा, सेवा के लिए विजयलक्ष्मी दुग्गल पुष्पा गुलेचा आदि मौजूद थे।

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