मंगलवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज के प्रवचन कार्यक्रम आयोजित हुआ। उपाध्याय प्रवर ने बताया कि सुरक्षा हर व्यक्ति चाहता है। परमात्मा कहते हैं कि जो स्वयं के जीवन को सुरक्षित करता है वही सुरक्षित है। परमात्मा की आज्ञा है- हृदय और विचारों से खुला होना चाहिए आचरण और चरित्र में नहीं। जिसका मन और काया, सुरक्षित है वही सुरक्षित है। आज्ञा के बाहर जाने वाले असुरक्षित हो जाते हैं और जो असुरक्षित है वही आज्ञा से बाहर है।
आज्ञा देने वाला आज्ञा देने के बाद विश्राम नहीं करते वे स्वयं उसकी परख करते हैं। नेपोलियन का उदाहरण देकर इसे समझाया। गुरु कहते हैं कि यदि नेपोलियन की आज्ञा का उल्लंघन किया तो सैनिक ने अपना एक जीवन खो दिया, लेकिन परमात्मा की आज्ञा का उल्लंघन करने वाले तो कितने ही जन्म खो देते हैं। आज्ञा से बाहर रहने वाला ही असुरक्षित है। उन्हें देव, गुरु, धर्म और जिनशासन की आज्ञा मिलती है। जो तीर्थंकर की सुरक्षा से बाहर चले जाते हैं वे स्वयं का विनाश करते हैं। यदि कर्मचारी आज्ञा का पालन नहीं करे तो उसे वेतन या पारिश्रमिक कैसे मिलेगा।
यदि सीता लक्ष्मण की आज्ञा में रहतीं तो सुरक्षित रहती, आज्ञा से बाहर जाते ही सुरक्षा समाप्त, एक कदम लक्ष्मण रेखा से बाहर रखा तो रावण द्वारा हरण हो गया। आज के समय तो इस संसार में पग-पग पर रावण तैयार खड़े हैं। हमें आज्ञा बंधन और गुलामी लगती है, परतंत्रता लगती है लेकिन शिकारियों से बचना हो तो पिंजरे में रहना बेहतर है। कर्म, वासना के सारे शिकारियों से बचना हो तो परमात्मा की आज्ञा में रहना होगा।
अहंकार रहते आज्ञा पालन नहीं कर पाते, सबसे पहले अपने अहंकार को छोड़ें।
अहंकार के वश होकर तीर्यंच और नरक गति में जाते हैं वहां अहंकार नहीं छूटता है लेकिन मनुष्य जीवन में आप अहंकार भी कर सकते हैं और समर्पण भी कर सकते हैं। इसे पकड़ भी सकते हैं और छोड़ भी सकते हैं। शुरुआत में मनुष्य को अहंकार सुहाता है लेकिन इसका उपचार शुरुआत में ही हो सकता है, बाद में तो इसे छोडऩा असंभव-सा हो जाता है।
अपने बेटे को सुखी नहीं समर्थ बनाओ, बेटी को मनमर्जी का सुख मत दो, उसे समझदार बनाओ। जैसा घर मिले उसे अच्छा बनाना आना चाहिए। कहां तक माता-पिता, और घर वालों की सुरक्षा काम आएगी। अंत में आज्ञा की सुरक्षा ही काम आती है।
आज्ञा जिनको बंधन लगती है वह पाप दृष्टि है। जिन्हें सुरक्षा और कृपा दिखती है वह सम्यक दृष्टि है। यदि धर्म को मानने वाले का साथ मिले तो गरीब घर भी अच्छा है लेकिन मिथ्यात्वी का साथ पाकर उसका सारा जीवन नष्ट हो जाता है। धर्म का संग पाने की सोच जिनके मन में सदैव रहती है, यह उनकी पीढ़ी-दर-पीढी का सौभाग्य बन जाता है।
श्रेणिक चारित्र में बताया कि अभयकुमार की बातों में आकर चेलना ने जिसे देखा ही नहीं उसे अपने मन में बसा लिया और अपनी बहन सुदिष्टा को बताया और उसे भी अपने साथ कर लिया। सुदिष्टा तो अपने माता-पिता का ध्यान आने पर बहाना बनाकर चली गई और चेलना वहां से अभयकुमार द्वारा बनाई सुरंग से निकल जाती है। राजगृही पहुंचकर श्रेणिक के साथ उसकी शादी हो गई।
कुछ समय बाद उसे श्रेणिक के धर्म, आहार-विहार और आचरण का पता चलता है तो वह बहुत दु:खी हो स्वयं को धिक्कारती, पश्चाताप करती है। श्रेणिक के आने पर उलाहना देती है कि मुझे पता नहीं था कि तुम्हारा धर्म बौद्ध है और यह हिंसाकर्म सदैव अनर्थ है। श्रेणिक रानी की बातों को सुनकर कहता है कि तुम्हारा धर्म दु:खदायी है और मुश्किल है। इस तरह दोनों एक दूसरे के धर्म के बारे में टिप्पणीयां करते हैं।
जो अच्छे बुरे का भेद नहीं समझता है, वही इस जगत में ठगे जाते हैं। जो हिंसा को धर्म मानते हैं वे कुमति और कुराग्री हैं। दोनों परस्पर वाद-विवाद करते हैं।
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि ६ सितम्बर से पर्युषण पर्व पर विशेष कार्यक्रमों की श्रृंखला की शुरुआत हो रही है। इस अवसर पर अधिक से अधिक तप और धर्माराधना से अपने कर्म बंधनों का क्षय कर मानव जीवन को सफल बनाने का आह्वान किया।