चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम शुक्रवार को उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने आचार्य आनन्दऋषि के जन्मोत्सव के अंतर्गत आनन्द चालीसा और ‘आनन्द गाथा सुनाई।
उन्होंने कहा हम जिन परिस्थितियों से प्रभावित होकर बोलते वव्यवहार करते हैं वही मिलता है। यदि मजबूरी या समस्या से ग्रस्त होकर व्यवहार करेंगे तो वैसा ही हमें मिलेगा और भक्ति से प्रेरित होकर व्यवहार करेंगे तो भक्ति प्राप्त होगी।
अनादिकाल से हम सभी अहंकार, मान, माया, लोभ के सागर में डूबे हैं, इसमें भक्ति का तूफान लाएं। अपने अहंकार को समाप्त करें। भक्ति का अर्थ ही शत प्रतिशत अहंकार का समाप्त हो जाना है।
जैन दर्शन की भक्ति स्वयं भगवान होने और स्वयं के जीवन में भगवान को जीने के लिए होती है। जैसे ही भक्त शुरु करते हैं, मन भटकने लगता है, मन के तूफान शुरू हो जाते हैं।
भक्ति में समय, क्षेत्र और मन की सभी दूरिया समाप्त हो जाती हैं। प्रीति और भक्ति में शक्ति होती है। नारदजी ने भी भक्ति को परम अनुराग और सर्वोच्च प्रेम कहा है जो अनन्त है। एक बार यदि प्रभु प्रेम में डूब जाएं तो भक्तामर का जन्म हो जाए।