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ज्ञान वाणी

अहंकार की पूर्ण समाप्ति ही भक्ति की शुरुआत : प्रवीणऋषि

अहंकार की पूर्ण समाप्ति ही भक्ति की शुरुआत : प्रवीणऋषि

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम शुक्रवार को उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने आचार्य आनन्दऋषि के जन्मोत्सव के अंतर्गत आनन्द चालीसा और ‘आनन्द गाथा सुनाई।

उन्होंने कहा हम जिन परिस्थितियों से प्रभावित होकर बोलते वव्यवहार करते हैं वही मिलता है। यदि मजबूरी या समस्या से ग्रस्त होकर व्यवहार करेंगे तो वैसा ही हमें मिलेगा और भक्ति से प्रेरित होकर व्यवहार करेंगे तो भक्ति प्राप्त होगी।

आचार्य मानतुंग कहते हैं प्रेम ही आत्मशक्ति है, जब प्रीति आत्मशक्ति बनती है तब भक्ति की रीति आती है। उन्होंने कहा है कि भक्ति करना समुद्र को कल्पांत के तूफान में हाथों से तैरकर पार करने के समान है।

अनादिकाल से हम सभी अहंकार, मान, माया, लोभ के सागर में डूबे हैं, इसमें भक्ति का तूफान लाएं। अपने अहंकार को समाप्त करें। भक्ति का अर्थ ही शत प्रतिशत अहंकार का समाप्त हो जाना है।

भवि जीवों को अपनी अनुभूति और सोच को असत्य और परमात्मा को सत्य कहना कठिन होता है। भक्तामर की आराधना करें। जहां सभी तंत्र, मंत्र और यंत्र समाप्त हो जाते हैं वहीं भक्ति की शुरुआत हो जाती है। भक्ति का स्पर्श हो जाए तो पूरा जीव बदल जाए। भक्ति हमें भगवत्तता की ओर ले जाती है।

जैन दर्शन की भक्ति स्वयं भगवान होने और स्वयं के जीवन में भगवान को जीने के लिए होती है। जैसे ही भक्त शुरु करते हैं, मन भटकने लगता है, मन के तूफान शुरू हो जाते हैं।

भक्ति की प्रेम है और प्रेम अविचारणीय है, जहां कोई तर्क-वितर्क और दिमाग से नहीं हृदय से काम चलता है।

भक्ति में समय, क्षेत्र और मन की सभी दूरिया समाप्त हो जाती हैं। प्रीति और भक्ति में शक्ति होती है। नारदजी ने भी भक्ति को परम अनुराग और सर्वोच्च प्रेम कहा है जो अनन्त है। एक बार यदि प्रभु प्रेम में डूब जाएं तो भक्तामर का जन्म हो जाए।

शनिवार को श्री प्राज्ञ जैन संघ, चेन्नई द्वारा आयंबिल दिवस और भावना गीत के अलावा रात्रि को कवि सम्मेलन होगा। 12 अगस्त को आचार्य आनन्दऋषि का 119वां जन्मोत्सव एवं अठ्ठाई तप महोत्सव प्रात: 9 बजे से नॉर्थ टाउन (बिन्नी मिल) पेरम्बूर में होगा।

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