चेन्नई. आवश्यकता की पूर्ति करना आसान है पर अहंकार का पेट भरना असंभव है। घर तक पैदल जाया जा सकता है। अहंकार कहता है पैदल क्यों गाड़ी से जाओ। पैदल जाओगे तो लोग क्या कहेंगे। यह आपकी और आस-पड़ोस वाले की सोच है। दूध में पानी मिलाया जाता है, नींबू का रस नहीं। कमजोर अवस्था में ब्लड चढ़ाया जाता है, जहर नहीं। यदि ब्लड की जगह लाल पानी चढ़ा दिया जाए तो मरीज मर जाएगा।
मेत्तूर मिलै में विराजित पुष्पदंत सागर ने कहा कि चरण वही है पर आचरण बदल गया है। ज्ञान वही है, ग्रंथ वही है लेकिन स्वार्थ में, अहम में, संप्रदायवाद में अर्थ बदल गया है। आचार्य ने कहा कि एक चरण वो है जो नाच रहे हैं, यश और धर्म की खातिर। एक चरण वो है जो कोठों की ओर भाग रहे हैं, हिंसा के लिए भाग रहे हैं। मदिरालय की ओर जा रहे हैं। मंदिर, मस्जिद, शिवालय की ओर जा रहे हैं। कुछ प्राणी सेवा की ओर जा रहे हैं। आप चरण किसे कहते हैं? मात्र पांव ही चरण नहीं है। जिसमें आचरण है, सत्य का अनुसरण है, वे वास्तविक चरण हैं। चरण क्यों बहकते हैं? हमारी आकांक्षा हमें विकृत कर रही है।
जब तक पदार्थों के मालिक बनने की तमन्ना रहेगी, अशांति बनी रहेगी। झूठ और छल का व्यापार चलता रहेगा। चरण को आचरण से जोडऩा चाहते हो, आत्मगुणों की सुरक्षा करना चाहते हो तो आत्मचरण करो। अंत:करण के सेवक बनो। जीवन धन्य हो जाएगा। भले ही तुम मुझे रण देना पर उस पर चल सकूं सम्यकचरण देना। भले ही तुम विपत्ति देना समता संग सहन करूं ये समझ देना।