Share This Post

ज्ञान वाणी

अहंकार आदमी को लघु बनाता हैं : आचार्य श्री महाश्रमण

अहंकार आदमी को लघु बनाता हैं : आचार्य श्री महाश्रमण

माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं सूत्र के छठे स्थान के चौत्तीसवें सूत्र का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि छह प्रकार के जातार्य बताये हैं| जाति, वर्ण आदि का दुनिया में अपना महत्व हैं, स्थान हैं| व्यक्ति के जीवन में आर्यता आए, सज्जनता आये, साधना आये| दुनिया में सज्जन भी मिलते हैं और दुर्जन भी| दोनों में देखने में कोई अन्तर न मिले| आकृति से नहीं, पर प्रवृत्ति से, व्यवहार से, सज्जनता – असज्जनता की पहचान हो सकती हैं|*

सज्जन शक्ति से दुसरों की रक्षा करता हैं*

आचार्य श्री ने आगे कहा कि एक दुर्जन के पास विद्या होती हैं, तो वह उससे विवाद कर लेता हैं, बात को उलझाने का प्रयास करता हैं| सज्जन आदमी के पास विद्या हैं, तो वह ज्ञान को बढ़ाने का और ज्ञान को बांटने का प्रयास करता हैं| विद्या का दुर्जन दुरूपयोग और सज्जन सद्पयोग करता है|*दुर्जन के पास धन हो जाए तो अंहकार कर लेता हैं, पर सज्जन के पास धन है, तो वह धन का दान करता हैं| दुर्जन के पास शक्ति है, तो वह दुसरों को कष्ट देता है, पर सज्जन शक्ति से दुसरों की रक्षा करता हैं|

चरित्र की रक्षा, रत्न की तरह करें*

आचार्य श्री ने आगे कहा कि आर्य आदमी सज्जन और अनार्य दुर्जन होता हैं| हमारा ध्यान इस बात पर हो कि मेरा जीवन, चारित्र और व्यवहार कैसा हैं? आदमी चरित्र की रक्षा, रत्न की तरह करें| धन आता है, चला जाता हैं| धन से क्षीण हैं, तो भी वह अक्षीण रहता है, पर चरित्र से क्षीण हो गया, तो वह अक्षीण नहीं रहता|*

हम आचार और व्यवहार अच्छा बनाने का प्रयास करें| एक खोड़ेली प्रवृत्ति का होता हैं, एक अच्छी प्रवृत्ति का होता हैं| जिसमें “नमन का गुण हैं, वह आर्य हैं, बड़ा आदमी हैं, सज्जन हैं|” अहंकार आदमी को लघु बनाता हैं| जिसकी सच्चाई के प्रति, देव, गुरु, धर्म के प्रति, ज्ञान के प्रति, नम्रता है, वह बड़ा आदमी होता हैं| सज्जन आदमी में ज्ञान मिलने के बाद भी विनय का भाव रहे| विद्या विनय से शोभित होती हैं| “जिसमें क्षमाशीलता हैं, जो कटु वचन रूपी विष को पी लेता हैं, वह महान् होता हैं|”

गुस्सा करना, हमारी हार*

आचार्य श्री ने आगे कहा कि जो गलत बात, कटु बात करता है, वह दया का पात्र हैं| उसमें आर्यता नहीं हैं| विशेष प्रेरणा देते हुए आचार्य श्री ने कहा कि *गुस्सा करना हमारी हार हैं,* सामने वाले ने कटु कहा, गलत कहा, लेकिन हम सम भाव में रहे| साधु हो या गृहस्थ अपने आराध्य का सम्मान करे| दीनता का भाव हो| भगवान महावीर हमारे धर्म देव हैं, उनके प्रति हमारी भक्ति हो, हम उनके दास हैं, गुलाम हैं, सेवक हैं, चाकर हैं| हमारा सबके प्रति आदर का भाव रहे| हम किसी का अपमान या अवहेलना न करें| हमारी सबके प्रति सद्भावना रहे|

असफलता, नई दिशा में सबक सिखाती हैं*

आचार्य श्री ने कबीरजी के दोहे के आधार पर कहा कि हम आकृति से नहीं प्रकृति से दीन और सहज बने| हम अपने स्वभाव पर ध्यान दे, मेरे में अनार्यता हैं, तो आर्यता बढ़ाने का प्रयास हो| सफलता मिल सकती हैं, पर असफलता मिल जाए, तो उससे सबक लेकर आगे बढ़ने का प्रयास करें| असफलता, नई दिशा में सबक सिखाती हैं| हर असफलता से सफलता की ओर बढ़ने का सबक लें| जिन्दगी में आगे बढ़ने का प्रयास करें, अच्छे मार्ग की ओर आगे बढ़े, उत्पथ की ओर न बढ़े|

जातिवाद को न दे महत्व*

आचार्य श्री ने आगे कहा कि जाति का भी महत्व है, पर जातिवाद को महत्व न दे|*यह देखे हमारा कर्म आचरण कैसा है? तो आदमी महान बन जाता हैं| साधना से सामान्य कुल का आदमी भी उच्च पदस्थ हो सकता हैं| हमारा चरित्र, व्यवहार कैसा है, इस पर ध्यान दिया जाए| गलत आचरण से गलत फल, अच्छे आचारण से अच्छे फल मिलता हैं, मिल सकता हैं|

गलती हो जाए तो, उसका परिष्कार कर आगे बढ़े| प्रमादी से गलती हो सकती हैं, वीतरागी, केवली ही कह सकता है, कि मैं गलती नहीं करता| ऐसी अवस्था हमारी भी आये कि हम कह सके, कि मैं गलती नहीं कर सकता| हमें भी बारहवाँ गुणस्थान मिल जाए| छठे गुणस्थान तक तो गलतियां हो सकती हैं, कारण वह अप्रमत नहीं है, प्रमाद हैं, पर उसका परिष्कार करने का प्रयास हो|

ज्ञान के साथ व्यवहार, आचार और संस्कार बढ़े*

आचार्य श्री ने आगे कहा कि एक दार्शनिक है, वह देखे, कि उसके ज्ञान के साथ आचार कैसा है? हमारे जीवन में ज्ञान बढ़े, व्यवहार, आचार और संस्कार बढ़े, तो जीवन आर्य बन सकता हैं|* हम बुराईयों को छोड़, अच्छाईयों को ग्रहण करते हुए अपनी आर्यता बढ़ाये|

दीपावली पर वृहद् मंगलपाठ*

आचार्य प्रवर द्वारा दीपावली का वृहद् मंगलपाठ 07 नवम्बर को सांय लगभग 07.30 बजे और नववर्ष का मंगलपाठ 08 नवम्बर को प्रात: लगभग 05 बजे सुनाया जायेगा|

साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा ने कहा कि बिना मुंडन खंडन कैसे हो, यह तो खाली अोखली में मुसल मारने जैसा हैं| देशव्रती में अप्रत्याख्यान नहीं किया, तो फिर साधु और श्रावक में क्या फर्क रहा|अभातेयुप राष्ट्रीय सहमंत्री श्री रमेश डागा ने दीपावली पूजन जैन संस्कार विधि द्वारा सम्पादित करने का आह्वान किया| कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार ने किया|

   *✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*

स्वरूप  चन्द  दाँती
विभागाध्यक्ष  :  प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar