चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा अहंकारी व्यक्ति अपने आपको ही सब कुछ जबकि दूसरों को मूर्ख समझता है। अहंकारी घंटाघर के बंदर के समान होता है जो खुद को सबसे ऊपर समझता है।
अभिमानी कहता है कि जगत मेरा सेवक है और विनयी कहता है मैं जगत का सेवक हूं। व्यक्ति जब जन्म लेता है तो उसके पास में न तो काम होता है और न ही धाम। न कोई पद होता है और न ही प्रतिष्ठा। नाम के चक्कर में पद और प्रतिष्ठा की दीवार खींचने वाला व्यक्ति अभिमानी हो जाता है। जो अपने आप को नहीं पहचान सकता वह ज्ञान-ध्यान-तप-बल का अभिमान करता है।
संसार में तीन प्रकार के रोग हैं तन का, मन का और आत्मा का। मान के कषाय पर विजय प्राप्त करने से ही केवल ज्ञान की प्राप्ति होती है। साध्वी अपूर्वा ने कहा तीर्थंकरों का नाम दिव्यता से भरा है चौबीस तीर्थंकरों के नाम में सुविधिनाथ की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा यह नाम प्रेरक भी है। सहायक और प्रभावक भी। इस नाम में सु यानी अच्छा और विधि यानी शैली का समावेश है।