चेन्नई. शुक्रवार को श्री एएमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज ने विरुत्थई की आराधना में कहा कि परमात्मा की प्रज्ञा जगत कल्याण की है। जो आत्मकल्याण के भाव से साधना–मार्ग पर चलते हैं वे बिना केवली बने सिद्ध हो जाते हैं, लेकिन तीर्थंकर कभी भी आत्मकल्याण नहीं बल्कि परकल्याण की भावना से आगे बढ़ते हैं। उनके रोम–रोम में जगत के सभी जीवों का कल्याण और धर्म तीर्थ का प्रवर्तन कर सभी को धर्मप्रेमी बनाने की भावना होती है। परमात्मा भयंकर से भयंकर स्थानों पर भी पर–उपकार के लिए पहुंचते हैं।
हम में कम–से–कम परिवार और संघ कल्याण की भावना तो होनी ही चाहिए कि मेरा हर कार्य मेरे परिवार को धर्म से समृद्ध कर देगा। जगत कल्याण के लिए सुधर्मासवामी कहते हैं कि परमात्मा के ज्ञान की इतनी उंचाई है कि अनुत्तर विमानवासी देवता के भी सवाल का जवाब यहां बैठे–बैठे दे सकते हैं। उनके ज्ञान की इतनी गहराई और विस्तार है कि इंसान ही नहीं तीर्यंच गति के जीवों में भी धर्म का जागरण कर देते हैं। परमात्मा की धर्मरूचि और ध्यान अनुत्तर है।
अर्जुनमाली, भरत चक्रवर्ती, इंद्रभूति, रतिसार राजा को कुछ ही समय में केवलज्ञान हो गया था लेकिन परमात्मा महावीर को केवलज्ञान होने में साढ़े बारह साल की लम्बी और कठोर साधना करनी पड़ी। इसका एक ही कारण है कि उनका उद्देश्य स्वयं का ही नहीं संपूर्ण जगत के कल्याण का था। वे समस्त जगत के जीवों के प्रति अपने वात्सल्य भाव से प्रवचन करते हैं। वे उन पलों में भी मौन नहीं हुए जिनमें पूर्व के तेईंस तीर्थंकर मौन रहे। निर्दोष शंख और चंद्रमा के समान दीप्तिमान परमात्मा प्रभु महावीर के स्मरण और आभामंडल में जो भी जीव पहुंचता है उसका जीवन परिवर्तन होकर जन्मजात वैर मिट जाता है।
हमने अपनी सारी शक्ति जिधर लगाई होगी वैसा ही उसका प्रतिफल प्राप्त होगा। इसे आर्तध्यान और रौद्रध्यान में लगाकर अपनी ऊर्जा और शक्ति का दुरुपयोग न करें। परमात्मा ने अपनी सारी शक्ति पिछले तीन जन्मों से धर्म में लगाई। एक बार धर्म में अपनी शक्ति लगा दें तो धर्म क्रिया करे या न करे सारी ऊर्जा धर्मध्यान में ही लगती है। कष्ट से कष्ट की वेला में भी उनके मन में आर्तध्यान और रौद्रध्यान नहीं आता है। राजा श्रेणिक को उसका बेटा कोनिक रोज पांच सौ कोड़े मारता है लेकिन फिर भी श्रेणिक को आर्तध्यान और रौद्रध्यान नहीं होता, दुश्मनी की भावना नहीं जन्मती, इसे ही कहते हैं अनुत्तर और श्रेष्ठतम ध्यान। गौशालक परमात्मा की वाणी को सुनकर उसे झूठा साबित करने का प्रयास करता है, फिर भी उसके प्रति परमात्मा के मन में कोई बदलाव नहीं होता है। जो जिनवचनों और परमात्मा की वाणी से प्यार करते हैं, उनका संसार मर्यादित हो जाता है। एक ही तमन्ना है कि आपके भी मन में प्रभु के वचनों के प्रति प्यार जन्म जाए। भावना रखें कि आपके रहते हुए घर में कोई वैर या दुर्भाव न आए। अपने परिवार के प्रति कल्याण की भावना भाएं। सभी की अनुत्तर और श्रेष्ठतम धर्म में रूचि हो।
भगवान शांतिनाथ ने पिछले जन्म में एक कबूतर को बचाने के लिए अपने शरीर के भी टूकड़े किए। आज सबसे बड़ी जरूरत है अपने परिवार के चरित्र और संस्कारों को बचाने की जरूरत है, ध्यान देने की जरूरत है। यह चुनौती है आपकी धर्म साधना पर। यदि परमात्मा के समवशरण में सांप और नेवला भी सुधर सकता है तो जैन धर्म में जन्मा बच्चा क्यों नहीं संभाला जा सकता है। उन्हें संभालें, भटकने न दें, धर्म संस्कारों से जोड़े रखें।
परमात्मा कहते हैं कि संयम की पालना करनी हो तो जीव को भी जानना होगा और अजीव को भी। यह परमात्मा का ध्यान है कि उन्होंने जीव के साथ अजीव का भी संयम करने को जरूरी बताया है। अजीव को जानेंगे तो ही जीव को पहचानेंगे। खोटे सिक्के को जानने पर ही असली का पता चलेगा।
धर्म क्षेत्र में आम के पेड़ लगाते चले जाएंगे तो बबूल के पेड़ उखाने की जरूरत ही नहीं है। धर्म की अमराई में कभी बुराईयों के बबूल पनपते ही नहीं। प्रत्येक गुरुवार को उत्तराध्ययन की आराधना का कार्यक्रम सुचारू चल रहा है। उपाध्याय प्रवर और तीर्थेशऋषि के सानिध्य में गौतमलब्धि का कार्यक्रम संपन्न हुआ। जिसमें चातुर्मास समिति के पदाधिकारियों सहित गौतमलब्धि फाउंडेशन के कार्यकर्तागण और एएमकेएम के ट्रस्टीगण उपस्थित रहे। 18 नवम्बर को चातुर्मास के अवसर पर कार्यकर्ता और सभी सहयोग करने वालों का सम्मान किया जाएगा।