चेन्नई. धर्मगुरु अपने धर्म के प्रति निष्ठावान होने चाहिए। उन्हें अपने धर्म और ग्रंथों पर श्रद्धा होने के साथ ही उनको यथार्थ बोलना चाहिए। धर्मगुरु यथार्थवादी होंगे तो ही उनके प्रति लोगों का विश्वास जमा रह सकता है। उनमें मेधा भी होनी चाहिए। मेधा शक्ति होती है तो धर्मगुरु अपने धर्म और उसका अनुपालन करने वालों का विकासकर्ता बन सकते हैं।
माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में आचार्य महाश्रमण ने कहा दुनिया में अनेक धर्म संप्रदाय हैं। भारत में भी विभिन्न धर्म संप्रदायों के लोग निवास करते हैं। सभी धर्मों के धर्मगुरु भी होते हैं और जनता पर उनका प्रभाव भी होता है। वे जनता को उद्बोध प्रदान करते हैं तो जनता भी उनके बताए मार्ग पर गति करने का प्रयास करती होगी।
आचार्य ने कहा धर्मगुरु में बुद्धि सम्पन्नता भी होनी चाहिए। बुद्धि सम्पन्न धर्मगुरु कोई निर्णय स्वयं द्वारा भी ले सकते हैं अन्यथा दूसरे के कहने पर चलना भला किस काम का। यदि धर्मगुरु बहुश्रुत होंगे तो अपने धर्म व ग्रंथों के विषय में विशेष जानकारी तो रख ही सकेंगे, वे अन्य धर्मों के विषय में भी अच्छा ज्ञान रखने वाले हो सकते हैं। उनमें बहुत से गुणों का समावेश भी होना भी जरूरी है।
धर्मगुरु को शरीर से भी स्वस्थ होने के साथ ही उनमें कर्म करने वाले और संघ के कार्य ऊर्जा से करने के लिए सक्षमता भी होनी चाहिए। मंत्रों का ज्ञान भी धर्मगुरु के पास होना चाहिए। शरीर बल, मंत्र और मनोबल हो तो किसी भी समस्या का समाधान हो सकता है। विरोधों और समस्याओं में भी उनका मनोबल बना रह सकता है और वे उन विरोधों से पार भी पा सकते हैं।
उन्होंने कहा कि दुनिया में तीन तरह के आदमी बताए गए हैं- पहला आदमी को बाधाओं आदि के डर से कोई काम आरम्भ ही नहीं करता है, वह निम्न श्रेणी का आदमी होता है। मध्यम श्रेणी का आदमी वह होता है तो कोई काम आरम्भ तो करता है किन्तु विघ्न-बाधाओं से घबराकर काम को बीच में ही छोड़ देता है। एक आदमी जो किसी कार्य को आरम्भ करता है। लाखों विघ्नए बाधाएं आती हैं तो वह उनका पूर्ण मनोबल के साथ सामना करता है और वह बाधाओं को पार कर सफलता भी प्राप्त कर सकता है। वह आदमी उत्तम श्रेणी का होता है।
आचार्य ने कहा कि धर्मगुरु को बात-बात पर उत्तेजित नहीं होना चाहिए। उनके मन में कोई कठोर बात हो तो भी शांति होनी चाहिए। धर्मगुरु को कलहमुक्त होना चाहिए। धर्मगुरु को उदारमना और प्रशांतमना होना चाहिए। ये सारी अर्हताएं धर्मगुरु के लिए मार्गदर्शक के समान होती हैं। उनको कमी को दूर करने और विशेषता विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। धर्मगुरु अपने अनुयायियों को धर्म और अहिंसा की प्रेरणा देने का प्रयास करें तो लोग अच्छे हो सकते हैं लोग अच्छे होंगे तो समाज अच्छा होगा और समाज अच्छा होगा तो देश भी अच्छा हो सकता है।
अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतिम दिन अहिंसा दिवस और दो अक्टूबर गांधी जयंती के संदर्भ में भी आचार्यश्री ने लोगों को अहिंसा, नैतिकता और नशामुक्ति के संदर्भ में पावन प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री ने कहा कि अणुव्रत आंदोलन सभी धर्मों के लिए स्वीकार्य है। अहिंसा अमृत के समान है। उसे प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए।
इस मौके पर भारत निर्माण संस्था के ऑल इंडिया कन्वीनर रविन्द्र भण्डारी व मुख्य सलाहकार संस्कृति भण्डारी के साथ ही प्रिंस ऑफ आरकाट नवाब मोहम्मद आसिफ अली ने आचार्य के दर्शन करने के बाद विचार भी व्यक्त किए। इसके साथ ही संस्था द्वारा नॉर्वें के डॉ. आरए हाल्वन को गांधी शांति पुरस्कार से नवाजा गया। इसके साथ ही आचार्य राज्य के शिक्षामंत्री केए सेंगोट्टयन व कृषिमंत्री एसएस कृष्णमूर्ति ने आचार्य के दर्शन किए। उनका चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति द्वार अभिनंदन किया गया।