ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा श्रावक श्रवण में श्रद्धा रखें। व्रत आराधना विवेक सहित करें। अपने कर्म को समझें।
जो श्रम करता है और श्रमणों की उपासना करता है वह श्रमोपासक कहलाता है। जिनवाणी को अपने हित के लिए सुनें जिससे मनुष्य कर्म बंधन से हटकर उच्च गति प्राप्त कर सकता है।
साध्वी ने कहा सच्चे अर्थों में कथनी और करनी में समानता होनी चाहिए। आज तक किसी पशु ने आत्महत्या नहीं की, फिर मनुष्य क्यों बदतर होता जा रहा है। इसके लिए कुछ तो सहनशीलता का अभाव और भौतिक साधनों का प्रभाव जिम्मेदार है।
यदि जिनवाणी को सुनकर व्रत का धारण मनोरथों का चिंतन करें तो आपके जीवन को सार्थक कर सकते हैं। सभा में पांच तीर्थंकर जाप का अनुष्ठान किया गया। धार्मिक संसार शिविर के चौथे दिन महिलाओं को काय का स्वरूप और काय की जानकारी दी गई है।