पर्युषण पर विशेष कार्यक्रम शुरू
बुधवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज के प्रवचन कार्यक्रम आयोजित हुआ। उपाध्याय प्रवर ने बताया कि श्रद्धा करने में बुद्धिमत्ता का प्रयोग करना चाहिए लेकिन श्रद्धा करते हुए बुद्धि का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
परमात्मा की आज्ञा को बिना अपनी तुच्छ बुद्धि उपयोग किए श्रद्धा के साथ स्वीकार करें और उन्होंने जो सत्य मार्ग दिखाया है उसका अनुसरण करना चाहिए। आचार्य मानतुंग ने अपनी बेडिय़ां तोडऩे के लिए किसी अन्य का आह्वान न कर अपनी श्रद्धा और सामथ्र्य को जगाया।
आचारांग सूत्र में बताया कि सुरक्षा की चाह रखने वाले को नियम और आज्ञा का पालन करना जरूरी है। जो स्वयं परमात्मा की आज्ञा में नहीं रहता वह स्वयं परेशान होता है और दूसरों को भी दु:खी और परेशान करता है। गोशालक, रावण और दुर्योधन जैसे अनेकों उदाहरण ऐसे हैं जिन्होंने अपने अहंकार को नहीं छोड़ा और दूसरों को परेशान किया।
जो व्यक्ति आत्मा का मूल्य भूलकर विषयों को प्राथमिकता देता है उन्हीं में रस लेता है, स्वत्व को भूलकर पर तत्त्व चिंतन करता है उसका स्वभाव कपट और छद्मस्थ बन जाता है। कोई उसे इससे बाहर निकालना चाहे तो भी वह निकलता नहीं।
घर छोडक़र जो संन्यासी बनता है लेकिन सुविधाओं को त्याग नहीं करता वह पापकर्मों में डूबा रहता है। जिसने अपनी वाणी और चारों इंद्रियों पर नियंत्रण कर ले, वह मनुष्य जीवन की उत्कृष्टता को छूता है। आज्ञा स्वीकार करने के लिए ही होती है, इसमें कोई इच्छा-अनिच्छा नहीं होती, कोई चिंतन नहीं हो सकता। जिस पर चिंतन किया जाए वह तो प्रस्ताव है।
परमात्मा ने सबसे बड़ी आज्ञा प्रतिक्रमण करने की दी है। अपने प्रत्यक्ष या परोक्ष किए गए अपराधों और गलतियों का पश्चाताप कर, दैनिक प्रतिक्रमण करना जिन-आज्ञा है, परमावश्यक है।
इन्द्रभूति गौतम ने गौशालक के आयुष्य पूर्ण के बाद परमात्मा से प्रश्न किया कि वह आराधक था या विराधक। परमात्मा ने कहा कि वह साधु था क्योंकि उसने अपने अंतिम समय में अपनी गलतियों का पश्चाताप किया और परमात्मा के शासन को स्वीकार करते हुए अपने शिष्यों के आगे गलतियों की आलोचना कर अपनीी गलतियों और विराधनाओं को जला दिया और साधु बना।
इस जीवन का कोई भरोसा नहीं कब आयुष्य पूर्ण हो जाए अत: प्रत्येक मनुष्य को प्रतिक्रमण और अपनी गलतियों की क्षमायाचना सोने से पहले जरूर करनी चाहिए। जो सबकुछ जानते हुए भी नहीं करता है वह समझदार होकर भी नासमझ है। पर्युषण पर्व का यह समय प्रभु भक्ति के सागर की गहराईयों में डूबने और धर्म, व तप की ऊंचाईयों को छूने का समय है, इसका सदुपयोग करें।
श्रेणिक चरित्र में बताया कि चेलना को श्रेणिक से विवाह के कुछ अवधि बाद उसके धर्म और आचार-व्यवहार का पता चलता है तो वह स्वयं पश्चाताप करती है और दोनों में वाद-विवाद होता है। एक दूसरे के धर्मों पर टिप्पणीयां होती है और श्रेणिक द्वारा चेलना की आस्था को तोडऩे के प्रयास किए जाते हैं लेकिन विफल रहता है।
तीर्थेशऋषि महाराज ने तारो-तारो निज आत्मा न तारो रे… भक्तिगीत गाकर सभी को भक्ति में डूबो दिया। उन्होंने कहा कि अध्यात्म का चिंतन करने वाला अति उत्तम, मोह का चिंतन करने वाला मध्यम और काम, वासना का चिंतन करने वाला अधम है लेकिन जो पर की चिंता करे वह अधम से भी अधम कहा गया है।
धर्म की शरण में जाने से सभी बंधन तोड़ सकते हैं। लेकिन अपने अहंकार और प्रमाद के कारण धर्माराधना नहीं करते। राग, द्वेष रहित जो परमात्मा की शरण ग्रहण करता है वह भव बाधाओं से दूर रहता है, संसार के चक्र से मुक्त हो जाता है। परमात्मा का स्मरण करने वाला सौभाग्यशाली है लेकिन परमात्मा जिसका स्मरण करते हैं वह परम सौभाग्यशाली है।
बुधवार को पर्युषण पर्व की स्थापना का कार्यक्रम हुआ। गुरुवार को पर्युषण पर्व के अवसर पर प्रात: 8.30 से 9.30 बजे तक अंतगड़ श्रुतदेव आराधना और 9 बजे से ‘सेफ मीट’ विषय पर विशेष व्याख्यान, दोपहर 3 से 4 बजे कल्पसूत्र की आराधना उपाध्याय प्रवर के सानिध्य में और सायं जैन इतिहास के सुनहरे पृष्ठों पर प्रवचन के साथ 13 सितम्बर तक विविध कार्यक्रमों की श्रृंखला जारी रहेगी। चातुर्मास समिति और एएमएकेएम ट्रस्ट के पदाधिकारी और समस्त कार्यकर्ता व्यवस्था और कार्यक्रमों की तैयारियों में जुटे हुए हैं।