श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी ट्रस्ट ट्रिप्लीकेन के तत्वावधान में आचार्यश्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनि श्री रमेशकुमार के सान्निध्य में रविवार से नमस्कार महामंत्र साधना प्रयोग साप्ताहिक कार्यशाला का आज से प्रारंभ हुई| जो 27 जुलाई तक प्रात: 9:30 से 10:30 बजे तक चलेगी|
नमस्कार महामंत्र की ऐतिहासिकता बनाते हुए मुनि श्री रमेशकुमार ने कहा कि मनुष्य चेतनावान है, उसमें अनंत ज्ञान को प्राप्त करने की क्षमता है। फिर भी वह अपने आप को अल्पज्ञानी मानता है। शक्ति संपन्न होते हुए भी शक्तिहीन मानता है।
वीतराग बनने की क्षमता और परम आत्मा होते हुए भी उस शक्ति का विकास नहीं कर पा रहा है। इसका मूल कारण है अपने आप से अपरिचित होना। आत्मा में निहित अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत शक्ति और अनंत आनंद की अनुभूति का सशक्त माध्यम नमस्कार महामंत्र की साधना है।
मुनि रमेश कुमार ने आगे कहा कि नमस्कार महामंत्र जैन धर्म – संस्कृति का प्रभावशाली महामंत्र है। मुकुट मणि के समान हैं। यह समस्त कामनाओं से मुक्त कराने वाला लोक में अनुपम मंत्र हैं। आध्यात्मिकता के विकास के साथ आधिभौतिक, आधि दैविक सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने वाला अमोध मंत्र हैं।
इस कार्यशाला के प्रारम्भ में नमस्कार महामंत्र के पांच पदों को चैतन्य केंद्रों पर अलग-अलग रंगों में जप के साथ ध्यान के प्रयोग कराये गये। सैंकड़ों भाई बहनों ने इस में भाग लिया।
मुनि सुबोध कुमार ने अपने प्राग् व्यक्तत्व में कहा कि धर्म शास्त्रों में शरीर को नौका से उपमित किया गया है। आत्मा को नाविक और संसार को सागर कहा हैं।
आत्मतत्व को पाने के लिए, संसार सागर के उस पार जाने के लिए शरीर रूपी नाव से धर्म की साधना करनी होगी, तभी हम संसार सागर से पार पहुंच सकते हैं।
अनादि कालीन कर्मों के बंधन से मुक्ति हो सकते हैं। इस मनुष्य जन्म में सदा जागरूक रहे, ऐसे कर्मों का बंधन न करे, जिससे पुन: नीच गति में जाना पड़े। जो कुछ भी करें सोच-समझ कर के करे|
संप्रसारक
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी ट्रस्ट ट्रिप्लीकेन, चैन्नई*