मदुरांतकम. यहां विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा गुरुभगवंतों का समागम मनुष्य को अपने जीवन को परम सीमा पर स्थापित करने के लिए मिलता है। उत्कृष्ट दिशा की ओर बढऩे के लिए आत्म वेदना जाग्रत करने की जरूरत होती है। इससे मनुष्य का संसार के प्रति मोह छूटता है और आत्म ज्ञान की ओर आगे बढ़ता है। बिना पुण्यवाणी के संतों तक पहुंचना बहुत ही कठित होता है।
उन्होंने कहा भाग्यशाली लोग सत्संग में जाकर जीवन को परमार्थ के पथ पर लगाने का कार्य करते हैं। मनुष्य को खुद में ऐसी सोच रखनी चाहिए कि वे अपने साथ अपने परिवार के कमजोर व्यक्तिओं का भी सहायता करे। जिनका दिल बड़ा होता है वास्तव में वहीं महान कहलाने के लायक होते हैं। जो सबसे श्रेष्ठ होते हैं उनको सेठ कहा जाता है।
पूर्वजों के संस्कारों को याद रख कर जीवन को सही मार्ग पर लगाया जाएगा, तभी जीवन में बदलाव आना संभव होगा। उन्होंने कहा मोक्ष प्राप्त करने के चार मार्ग होते है लेकिन उनमें से सबसे पहला मार्ग दान का होता है। इस मार्ग पर चल कर मनुष्य जीवन को ऊंचाइयों पर पहुंचा सकता है। जीवन में बहुत अच्छे कार्य हैं जिनको मनुष्य करके जीवन को सदगुणों से जोड़ सकता है।
सागरमुनि ने कहा कि संसार की यात्रा में दुख और कष्ट होता है। संसार की यात्रा जेल से जेल की यात्रा की तरह होती है। लेकिन अध्यात्म की यात्रा जेल से महल की यात्रा होती है। मनुष्य को जीवन में बदलावा लाने के लिए सबसे जरूरी जेल से महल की यात्रा करने की जरूरत है। जो मनुष्य धर्म की रक्षा करते हैं धर्म भी उनकी रक्षा करता है।