चेन्नई. अज्ञान का अंधेरा खतरनाक है। पूर्णिमा के चांद को सारे लोग देखते हैं, आनंद लेते हैं। जब अमावस्या को कोई नहीं देखता। जीवन में उतार चढ़ाव आते रहते हैं।
कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा कि चंद्रमा और सूर्य कुंडली के राजा हंै। इनके बिना जीवन चल नहीं सकता। सूर्य परमात्मा है और चंद्रमा गुरु जबकि संत आत्मा है। परिस्थितियां परिवर्तनशील, शरीर परिवर्तनशील और जगत भी परिवर्तनशील है।
इस परिवर्तन को देख कर परेशान न हों। चंद्रमा कहता है बहुत बड़े बनने की आकांक्षा करने वाला छोटा बनता है। पूर्णिमा के बाद चंद्रमा घटने लगता है। चंद्रमा चांदी की थाली की तरह आकाश में चमकता है। धीरे धीरे उसका लोप हो जाता है। कर्माश्रित धन वैभव भी चंद्रमा के समान है। तांत्रिक अनैतिक साधनाएं अंधेरे में करते हैं।
वसंत के बाद पतझड़ और दिन के बाद रात भी आती है। सूर्य का प्रकाश है तो रात का अंधेरा भी है। बचपन द्वितीया के चांद के समान है और बुढ़ापा अमावस्या की रात के समान। द्वितीया का चांद सबको प्रिय होता है। इसके साथ तारामंडल का परिवार भी बढ़ता जाता है। घर भरापूरा है।
तिजोरी में धन हो तो सब सम्मान करते हैं। चौथ का चांद स्त्री के सुहाग का प्रतीक है। रंग लाल है पर चंद्रमा शांत है। चंद्रमा कहता है किसी के लिए जहर मत बनो औषधि बनो। अपने आपको शीतल और शंात बनाओ क्योंकि उबलते पानी में प्रतिङ्क्षबब नजर नहीं आता। अपने आपको उबालो मत। परमात्मा का प्रतिबिंब भी तुम्हारे अंदर नजर आने लगे। चंद्रमा से प्रेरणा लो और जीवन सुधारो।