चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा हमेशा अच्छा सोचना और करना चाहिए। जब काया से कोई भी अच्छी प्रवृति होती है तो उससे जीवन का भला और आत्मा का हित होता है। मनुष्य अपनी अज्ञानता से जीवन में दुख उत्पन्न करता है। ऐसा करके वह पूर्व भव के वैभव को भी खो देता है। लेकिन याद रहे गलत हरकत जीवन को गलत मार्ग पर पहुंचा देती है। जब तक पुण्य का उदय है तब तक कोई भी गलती करो दुख नहीं होगा, लेकिन पापों का उदय होने पर हर गलती सामने आने लगती है। गलतियों का परिणाम किसी न किसी रूप में भुगतना ही पड़ेगा, इसमे कोई माफी नहीं मिलती।
जीवन को उज्ज्वल और पावन बनाने के लिए व्यक्ति की प्रत्येक प्रवृति उसके व्यवहार के अनुरूप होनी चाहिए। अगर मनुष्य अपने व्यवहार से हट कर कोई भी कार्य करता है तो उसे जीवन में दुखों का सामना करना पड़ता है। व्यवहार के अनुरूप चलने वाला मनुष्य अपने जीवन में अमृत घोलने का कार्य करता है। ऐसा उत्तम जीवन पाकर मनुष्य को मन, वचन और काया का सुंदर संचालन करने का प्रयास करना चाहिए। अगर मनुष्य चाहे तो अपने मन में दूसरों के प्रति अच्छे विचार प्रस्तुत कर पुण्य का कार्य कर सकता है लेकिन ऐसा उत्तम काम करने के बजाय मन ही मन में दूसरों के प्रति गलत विचार लाकर स्वयं की आत्मा में पाप की धारा में बांध लेता है।
सागरमुनि ने कहा आचरण व्यक्ति को ऊंचाई पर ले जाता है। पाप करने से आत्मा नरक की ओर बढ़ती है। यह सिर्फ लोभ की वजह से होता है। अच्छे कर्म कर अच्छा भव पा सकता है। जीवन सफल बनाना है तो लोभ, मोह, माया और क्रोध से खुद को दूर रखने की कोशिश करनी चाहिए। धर्मसभा में संघ के अध्यक्ष आनन्दमल छल्लाणी एवं अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे। मंत्री मंगलचंद खारीवाल ने संचालन किया।