चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने सोमवार को कहा परमात्मा की भक्ति के समय लोगों को मन में उल्लास रखना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में अनेक प्रकार की अनुभूति होती है। परमात्मा का प्रार्थना, स्तुति करते-करते लोगों को बहुत लाभ होता है इसलिए व्यक्ति को अपने अंतरात्मा की भावनाओं को परमात्मा के चरणों में लगाना चाहिए।
भगवान की भक्ति करते समय जो अनुभूति होता है वह संसार के अन्य किसी कार्य में नहीं होता। प्रवचन सुनने का मौका ही मनुष्य के लिए बहुत बड़ी बात है। उन्होंने कहा कि मनुष्य को कोई भी कार्य करते समय भाव अच्छे रखने चाहिए। जिस प्रकार दान में भाव नहीं हो तो दान करने का कोई मतलब नहीं निकलता, उसी प्रकार भक्ति करने में भी शुद्ध भाव होना चाहिए।
मनुष्य को पापों की सजा कब मिल जाए पता नहीं होता, इसलिए धर्माचरण कर अपने पाप को खत्म करना चाहिए। धर्म से किया हुआ पुरुषार्थ जीवन में आनंद भर देता है।
सागरमुनि ने कहा व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का लगातार प्रयास करते रहना चाहिए। प्रकाश में जाने से पहले अंधकार को भी जानने की जरूरत होती है, तभी प्रकाश का असली मतलब पता चल पाएगा। जहां सत्य होता है वहीं धर्म, प्रकाश और सुख का अनुभव होता है। अंधकार में असत्य, दुख और अधर्म जैसे कार्य होते है।
अंधकार में रहकर व्यक्ति कभी भी आगे नहीं बढ़ सकता है। जीवन में आगे जाने के लिए प्रकाश बहुत ही जरूरी है। जो व्यक्ति इन बातों को समझ कर प्रकाश में जाने का प्रयास करेगा उसका जीवन बदल जाएगा। विनयमुनि ने मंगलपाठ सुनाया। इस मौके पर संघ के अध्यक्ष आनन्दमल छल्लाणी सहित अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे।