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अंतर शत्रु बाह्य शत्रु अंदर में रहे हुए दोष यह हमारे अंतर शत्रु है

अंतर शत्रु बाह्य शत्रु अंदर में रहे हुए दोष यह हमारे अंतर शत्रु है

वितराग परमात्मा जिन्हों ने अंदर में रहे हुए अध्यात्म शत्रुओं का विनाश कर परम स्वतंत्रता परम स्वाधीनता और परम सुख की प्राप्ति की शत्रु तो बहुत है पर भगवान ने उसके भेद बताएं अंतर शत्रु बाह्य शत्रु अंदर में रहे हुए दोष यह हमारे अंतर शत्रु हैl शत्रु होते हुए भी मित्रता का दावा करते हैं कि मैं तुम्हारे साथ ही रहूं दोस्त तीन प्रकार के बताए हैंl आधिदैविक दोष यानी भाग्य की कमजोरी कोई नहीं था शांति से बैठे थे अचानक पानी आ गया भूकंप आ गया व्यक्ति अभी था अभी नहीं ऐसा हो जाता है यह आधिदैविक दोष है।

आदि भौतिक दोष व्यापार चालू किया बहुत बड़ी आशा रखी पर ऐसी खोट आयी की की सब कुछ खत्म हो गया करोड़पति का रोड़पति हो गयl समय के साथ भिन्न-भिन्न हो गया यह है आदि भौतिक दोष। आध्यात्मिक दोष अंदर से गुस्सा आता अहंकार ईर्ष्या लालसा यह सभी आध्यात्मिक दोष है वीर का शासन मिला यह अमूल्य हैl बस साधना में जीवन को जोड़ना है जिन शासन का उत्तम सार हैl यह उपशमभाव में सदा रहना है हजारों शत्रुओं से हम गिरे हुए हैं उन पर विजय प्राप्त करना पड़ता हैl

उनको जीतने के लिए व्युह बनाना पड़ता है राजा तंबू में रहते हैं बीच में युद्ध होती हैl युद्ध कैसे करना उसके लिए व्युह रचना पड़ता है शास्त्र में आने का प्रकार के व्युह बताया है भगवान ने बताया क्यों एक को जीता है वह सभी को जीत लेता हैl जीत किस पर प्राप्त करना है यह हमारे ऊपर है बाहर से नहीं अंदर से जीत को प्राप्त करना हैl गीता प्राप्त की महापुरुषों ने चार कषायों को जीता पांच इंद्रियों को जीता तभी जाकर आत्मा पर जीत पाईl हमें अपने मां पर कंट्रोल करना है इस संसार की चौखट में जीव को भ्रमण कराने वाला ही दुष्ट मन है एक दुष्ट मन को ज्ञान की डोर में बांधकर जीत को प्राप्त करना हैl इसका सुंदर सा विश्लेषण साथी आगम श्री जी महाराज साहब ने दिया परम पूज्य श्री जी महाराज अपने धैर्याश्रीजी म सा सुंदर स्तवन पेश किया। संचालन अशोक जी बाठिया ने कियाl

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