भगवान महावीर के जीव ने अनन्त भव किये हैं| आगमों में उनके 27 मुख्य भवों का वर्णन मिलता हैं| उनका जीव नीचे में सातवीं नरक तक गया, तो कभी चक्रवर्ती, वासुदेव भी बना| कई भवों में कठोर साधना का जीवन भी जीया, तो कभी देव गति में भी गया| यह सब तो कर्मवाद का सिद्धांत हैं| तीर्थकर बनने वाली आत्मा ने पाप कर्म किया है तो उन्हें स्वयं भोगना ही पड़ेगा, भुगतान करना ही होगा, उपरोक्त विचार माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में धर्म सभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहे| आचार्य श्री ने आगे कहा कि कर्मवाद नीतिपूर्ण न्यायालय है, यह निष्पक्ष हैं| बड़े से बड़ा कोई भी जीव हो, जिसने पाप कर्म किये हैं, उसे इस न्यायालय में दया नहीं मिलती और निर्दोष को दंड नहीं मिलता| हमारे देश में उच्च न्यायालय है, सर्वोच्च न्यायालय हैं, पर यह सर्वोच्च न्यायालय से भी ऊपर हैं, इससे कोई दोषी छूट नहीं सकता...
माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं सुत्र के दूसरे अध्याय का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने बताया कि पद्मप्रभु और वासुपूज्य ये दो तीर्थकर पद्म गौर वर्ण के थे| दोनों का शरीर समान था, लाल रंग के थे| पद्म का दूसरा नाम कमल होता है| प्राकृत एवं संस्कृत शास्त्रों में कमल को अनासक्ति के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है| अध्यात्म में अनासक्ति का बड़ा महत्व है| आसक्ति आदमी को डूबा देती है और अनासक्ति ऊपर उठा देती हैं| गृहस्थ जीवन में भी अनासक्ति की भावना रहे| गृहस्थ परिवार, समाज में रहते हुए भी चक्रवती भरत की तरह निर्लिप्त रहे| आचार्य श्री ने आगे कहा कि जो आदमी हर समय मृत्यु को याद करता है, वह अनासक्त भाव में रह सकता हैं| अनित्यता का भाव और उसकी अनुप्रेक्षा अनासक्ति का पाठ पढ़ाने वाली है, मौत को सामने रखने वाली होती है| आसक्ति पतन की ओर ले जा सकती है, अत: व्य...
माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में आचार्य श्री महाश्रमण ने रक्षाबंधन के पर्व पर कहा कि आज श्रावण की पूर्णिमा हैं| आज के दिन बहने भाइयों के राखी बांधती हैं, पर हम भी हमारी आत्मा को बहन बनाएं और इसकी रक्षा का ध्यान रखें| पापाचार से बचने का प्रयास करें| नई पीढ़ी के लिए विशेष प्रेरणा देते हुए आचार्य प्रवर ने कहा कि वे होटल में रहे या हॉस्टल में, जहां मांसाहार बनता हो, वहां खाना न खाएं| धूम्रपान, मद्यपान से भी दूर रहे| आचार्य श्री आगे कहा कि ठाणं सुत्र में दो तीर्थंकरों का नाम आया है, जिनका नील वर्ण था| हर तीर्थंकर के गृहस्थ जीवन में भी अहिंसा की चेतना जागृत रहती हैं| आचार्य श्री ने बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि की घटना का वर्णन करते हुए कहा कि जब वे शादी के लिए जा रहे थे, तो रास्तें में पशुओं की करुण पुकार सुनकर उन्होंने अपना रथ वापस मोड़ कर शादी की जगह संयम मार्ग को स्वीकार क...
माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में बसवा समिति के अध्यक्ष भारत के पूर्व कार्यवाहक राष्ट्रपति श्री बासप्पा दनप्पा जत्ती (बी डी जत्ती) के सुपुत्र श्री अरविंद जत्ती ने *”वचन“* ग्रन्थ को आचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में लोकार्पण करते हुए कहा कि 12वीं शताब्दी के संत बसवेश्वरजी के सर्व समानता के समाज का निर्माण करने की कोशिश में उनके विचारों को 173 शरणों में, दोहों में, कविता में लिखा यह ग्रन्थ हैं| दया के बिना धर्म नहीं है, मुझसे छोटा कोई नहीं, आदि अनेक सारगर्भित वचनों का संकलन है| श्री जत्ती ने कहा कि अभी भारत वर्ष में स्वच्छ अभियान चल रहा हैं, हम सब उसमें साथ दे रहे हैं| मगर मैने मोदीजी के आगे ही बताया था कि बसवेश्वर जी के दृष्टिकोण से यह अपूर्ण स्वच्छ भारत होगा| वो आश्चर्य में पड़ गए, तब वचनों के द्वारा मैने उनकों उत्तर दिया कि अंतरंग शुद्धि और बहिरंग शुद्ध...
*भिक्षु भक्ति संध्या से भिक्षुमय बना जैन तेरापंथ नगर माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं सुत्र के दूसरे अध्याय का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि धर्माराधना के दो प्रकार श्रुत धर्माराधना और चारित्र धर्माराधना हैं| श्रुत यानी ज्ञान की आराधना, ज्ञानाराधना के लिए स्वाध्याय करना जरूरी होता है| दशवैकालिक आगम के दसवें अध्ययन में कहा भी गया है “पढमम णाणं तऒ दया” पहले ज्ञानार्जन करो फिर आचरण करो| आचार्य श्री ने आगे कहा कि स्वाध्याय के पांच प्रकार बताए गए हैं – वाचना, प्रछना, पुनरावृति, अनुप्रेक्षा, और धर्मकथा| अच्छी पुस्तकों, आगमों का स्वाध्याय वाचना के अन्तर्गत आता है, जो पढ़ा है, उसमें जिज्ञासा, प्रति प्रश्न करना प्रछना के अंतर्गत आता है| जो पढ़ा है, उसका स्थिरिकरण के लिए पुनरावृत्तन करना, बार-बार पढ़ना| जो पढ़ा है उसमें अनुचिंतन करना -अनुप...
*संत ताप, पाप हरने वाले : गुरूराज राजाराम* *संत कृपाराम ने कहा कि “संतो के चरणों में तो हमेशा ही बालक बनकर ही रहना चाहिए”* माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में आचार्य श्री महाश्रमणजी के दर्शन कर *गुरू कृपा आश्रम, जोधपुर के गुरूराज राजारामजी महाराज* ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि आचार्य प्रवर के सानिध्य में एक कुंभ सा मेला लगा हुआ है| यहा आप सब आकर ज्ञान की गंगा में गोता लगाते हैं| बिना परमात्मा की कृपा, बिना प्रभु की अनुकम्पा के यह कार्य संभव नहीं है| जो भी इस आयोजन में रात दिन प्रयास किया, उन लोगों को महाराज श्री ने, आप सब की भाव – श्रद्धा को देख कर समय दिया, चातुर्मास प्रदान किया और गंगा के अन्दर जाने से सभी ताप और पाप दूर हो जाते हैं, वैसे *चेन्नई की धरती पर इस महाकुंभ में महाराज श्री के शब्दों को सुन करके आपके भी ताप और पाप सब दूर ह...
श्रद्धा और तत्व को समझ कर सम्यक्त्व स्वीकार करने की दी पावन प्रेरणा महातपस्वी के सान्निध्य में बह रही तप की अविरल गंगा माधावरम स्थित महाश्रमण समवसरण में धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री महाश्रमणजी ने ठाणं सुत्र के दूसरे अध्याय का विवेचन करते हुए कहा कि दर्शन के दो प्रकार बताए गए हैं, सम्यक् दर्शन और मिथ्या दर्शन। वैसे दर्शन शब्द के अनेक अर्थ होते हैं, एक अर्थ है देखना, जैसे मैने गुरू या चारित्र आत्माओं के दर्शन किये। दूसरा अर्थ है प्रदर्शन यानि दिखावा, तीसरा अर्थ है सिद्धांत जैसे जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन, भारतीय दर्शन इत्यादि दर्शन का चौथा अर्थ है। आँख (लोचन) जिसके द्वारा देखा जाए, दर्शन का पाँचवा अर्थ है सामान्यग्राही बोध (सामान्य ज्ञान) जैसे पच्चीस बोल के नवमें बोल में चार दर्शन बताये गये हैं। दर्शन का छठा अर्थ होता है तत्वरूचि यानि श्रद्धा, आस्था, आकर्षण। आचार्य श्री ने आगे बताया क...
-चतुर्विध धर्मसंघ ने दी स्मरण व अर्पित की भावांजलि चेन्नई. माधवरम में चातुर्मास प्रवास स्थल परिसर स्थित ‘महाश्रमण समवसरण’ प्रवचन पंडाल में विराजित आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में तेरापंथ धर्मसंघ के प्रणेता आचार्य भिक्षु का जन्मदिवस ‘बोधि दिवस’ के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर आचार्य ने आचार्य भिक्षु के जीवन वृत्तांत सुनाते हुए उनके जीवन से सीख लेने की प्रेरणा दी। आचार्य ने कहा आचार्य भिक्षु का जन्म आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी को हुआ था। उस क्षेत्र का गौरव बढ़ जाता है, जहां जन्म लेने वाला बच्चा विशिष्ट पुरुष बन जाता है। राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र के कंटालिया गांव में जन्मे आचार्य भिक्षु संत बनने से पूर्व गृहस्थ भी रहे। आदमी के वर्तमान जीवन पर पूर्वजन्म का भी प्रभाव होता है जिसके कारण कोई आदमी शांत, कोई क्रोधी, कोई बुद्धिमान तो कोई मूर्ख हो जाता है। आचार्य ने उनके जीवनकाल की घटनाओं पर प्रकाश डाल...