कोयम्बत्तूर

दान के दो मुख्य प्रकार है सुपात्र और कुपात्र: वीरेन्द्र मुनि

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत धारा जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि भगवान महावीर स्वामी सुबाहू कुमार को 12वें अतिथि संविभाग व्रत में सुपात्र दान देने का बताया गया। वैसे तो दान के कई प्रकार है पर मुख्य दो है सुपात्र और कुपात्र – सुपात्र दान देने से आत्मा निर्मल पवित्र बनती है और कभी दान देते हुवे भावो में बह जाये तो तीर्थंकर गौत्र का बंध भी ही सकता है। तीर्थंकर न भी बने तो तीसरे भव में या 15 वें भव तक आत्मा मोक्ष में जा सकती है और अगर 15 वें भव तक मोक्ष न जा पाये तो अधर पुदगल परा वर्तन काल मे तो अवश्य आत्मा मुक्ति का वरण कर लेती है। इसलिये दान देते समय भावना शुद्ध रखे और निस्वार्थ भाव से दान धर्म सेवा भक्ति करके अपनी आत्मा को अजर अमर पद की अधि कारिणी बना सकते है। कुपात्र वह है जिसे देने से ह...

विमलशिष्य वीरेन्द्रमुनि का प्रवचन

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में पर्युषण पर्व के सातवें दिन जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्रमुनि ने धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि आज हम संतों की बीती बातें सुनाने का व स्वाध्याय संघ के प्रणेता परम पूज्य श्री पन्नालाल जी म सा की जन्म जयंती है। ( 1 ) पूज्य आचार्य सम्राट श्री हुक्मीचंदजी म सा महान त्यागी वैरागी ज्ञानी ध्यानी संत थे जो कि एका भव अवतारी थे पुज्य श्री एक बार राजस्थान के नाथद्वारा में प्रवचन सुना रहे थे तब आसमान से रुपयों की बारिश हुई थी। ( 2 ) परम पूज्य आचार्य श्री धर्मदासजी म सा ने अपने शिष्य को कायर जानकर के धार शहर में स्वयं संथारे के आसन पर बैठ गये थे जिन शासन की आन बान शान की रक्षा के लिये अपने आपको न्योछावर कर दिया था। ( 3 ) पुज्य श्री नेतसिंहजी म सा ने सेलाने ( मध्य प्रदेश ) के जंगल में मंगल कर दिया था महुआ के वॄक्ष के नीचे संथारा कर लिया था आपके...

चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने जैन दिवाकर दरबार में धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि अंतगढ़ सूत्र में उन महान पुण्यशाली आत्माओं का वर्णन किया है जिन्होंने भगवान की अमृतमयी वाणी सुनकर संसार को त्याग दिया और आत्म साधना के पथ पर अग्रसर हो गये संसार त्याग कर मुनिधर्म अंगीकार किया। फिर पीछे मुड़कर भी नहीं देखा कि परिवार क्या कर रहा है उनका संसार कैसा चल रहा है मोह माया राग द्वेष छोड़े तभी सही रूप में मुनि बन सकते जहाँ मेरा तेरा है। एक परिवार छोड़ा पर गांव-गांव में परिवार बढ़ा लिया ये मेरे श्रावक है मेरे संप्रदाय के हैं। ऐसे भाव जहां होते हैं वहाँ आत्मा का कल्याण नहीं राग द्वेष संसार में परिभ्रमण कराते हैं। भगवान महावीर स्वामी से गौतम स्वामी ने पूछा प्रभु मेरे बाद दीक्षा लेने वाले किसान नौकर चपरासी थे। वो भी केवली हो गये ...

स्वागत के लिये तैयार हो जाओ पर्युषण आ गये: वीरेन्द्र मुनि

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने जैन दिवाकर दरबार में धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि आज हमारे आंगन में पर्वाधिराज पर्व पर्युषण आ गये हैं। स्वागत के लिये तैयार हो जाओ परंतु स्वागत कैसे करेंगे आपके घर में मेहमान आते हैं। जंवाई आदि आते हैं तब कैसे तैयारी करते हैं अच्छा खाना पीना आदि बनाते वैसे करेंगे .ये आठ दिन पर्व के रूप में आये हैं। इन दिनों में ज्यादा से ज्यादा त्याग तपस्या दया दान धर्म ध्यान जप तप के द्वारा ही स्वागत कर सकते हैं। मुनिश्री ने अन्तगढ़ सूत्र का वांचन मूल पाठ व विविध विवेचन के साथ सुनाते हुवे सत्संग की महिमा का वर्णन करते हुवे कहा कि सत याने (अच्छा) संग याने ( संगत ) अथार्त अच्छे की संगत करना कहा भी है। संगत शोभा पाईये शाह अकबर बेन ” वाही काजल ठीकरी वाही काजल नैन ” जैसे के साथ रहेंगे वैसे ह...

सामयिक के बिना मुक्ति नहीं: वीरेन्द्र मुनि

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने जैन दिवाकर दरबार में धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने 9 वें सामायिक व्रत के विषय में फरमाया है। सामयिक के बिना मुक्ति नहीं, सामयिक में तो आना ही पड़ता है। सामायिक का यह मतलब नहीं कि सिर्फ मुंहपति बांधकर बैठना – मन वचन काया की शुद्धि होना आवश्यक है. सामायिक में मन से बुरे विचार नहीं करना और कठोर या पापों की प्रवृत्ति हो ऐसे शब्द (वचन) नहीं बोलना। बिना विचारे सोचे समझे बिना वचन बोलने से महाभारत हो गया महासती द्रोपदी ने जो शब्द उच्चारित किया कि ” अंधे का जाया अंधा ” जिसके कारण कैसे कष्ट झेलने पड़े। इसलिये सामायिक में सावद्य भाषा का प्रयोग न करें। हिंसा कारी पापकारी कठोर वचन नहीं बोले सामायिक समता भाव में रहना सिखाती है। सामायिक आप कहीं पर भी किसी स...

आठवें व्रत में भगवान ने अनर्थदण्ड के विषय में बताया है: वीरेन्द्र मुनि

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने जैन दिवाकर दरबार में धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि आठवें व्रत में भगवान ने अनर्थदण्ड के विषय में बताया है।  बिना कारण जमीन खोदना, पानी गिराना, अग्नि जलाना, पंखा वगैरा तथा वनस्पति का छेदन भेदन करना। जानबूझकर दूसरों को खोटी ( गलत ) सलाह ( मशविरा ) देना दूसरों को अन्याय अत्याचार पर चलने के लिये उपदेश देना और विवाह आदि प्रसंगों पर आतिशबाजी पटाखे फोड़ना और दूसरों को प्रेरित करना फोड़ने के लिये दूसरों को खुश करने के लिये भांड कुचेष्टा करना और दूसरों की नकल करके हंसाना ये सब अनर्थदण्ड में आता है। बिना कारण बोल-बोल करना ऊखल मुसल तलवार आदि हथियार या औजार बनाने की फैक्ट्री खोलना और उपभोग और परिभोग में आने वाले खाने पीने पहनने-ओढ़ने आदि वस्तुओं का अधिक से अधिक संग्रह करना ये सब अनर्थदंड विरमणव्...

परिग्रह का परिमाण करना चाहिये: वीरेन्द्र मुनि

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने जैन दिवाकर दरबार में धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने पांचवें व्रत की व्याख्या करते हुवे कहा कि परिग्रह का परिमाण करना चाहिये। आपको 12 व्रतों का पालन करने में कोई भी अड़चन नहीं आती है। क्योंकि आप जितना चाहो उतना व्रतों में छूट ( आगार ) रख सकते हो अगर हम व्रत ग्रहण करते हैं तो जितना आगार रखेंगे उतना ही आश्रव रहेगा। बाकी का आश्रव रुक जायेगा बांध ( डेम ) में से जितना चैनल से पानी छोड़ेंगे उतना ही बाहर होगा। वैसे ही हम पच्चखान करते हैं तो जितना छूट रखी है उतना ही कर्म बंधन होगा बाकी के कर्मों के बंधन से छुटकारा मिल जायेगा। अतः खेत मकान दुकान गोडाउन व सोना चांदी रुपया हीरे मोती जवाहरात आदि तथा सचित परिग्रह में पशु दास दासी हाथी घोड़ा गाय बैल भैंस आदि आप जितने चाहो उतने...

परिग्रह का परिमाण करना चाहिये: वीरेन्द्र मुनि

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने जैन दिवाकर दरबार में धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने पांचवें व्रत की व्याख्या करते हुवे कहा कि परिग्रह का परिमाण करना चाहिये। आपको 12 व्रतों का पालन करने में कोई भी अड़चन नहीं आती है क्योंकि आप जितना चाहो उतना व्रतों में छूट ( आगार ) रख सकते हो। अगर हम व्रत ग्रहण करते हैं तो जितना आगार रखेंगे उतना ही आश्रव रहेगा बाकी का आश्रव रुक जायेगा बांध ( डेम ) में से जितना चैनल से पानी छोड़ेंगे उतना ही बाहर होगा वैसे ही हम पच्चखान करते हैं। तो जितना छूट रखी है उतना ही कर्म बंधन होगा बाकी के कर्मों के बंधन से छुटकारा मिल जायेगा अतः खेत मकान दुकान गोडाउन व सोना चांदी रुपया हीरे मोती जवाहरात आदि तथा सचित परिग्रह में पशु दास दासी हाथी घोड़ा गाय बैल भैंस अभी आप जितने चाहो उतने र...

जिन्होंने अपने जीवन को देश जाती या धर्म के लिये कुर्बान किया जन्म जयंती मनाते है: वीरेन्द्र मुनि

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने जैन दिवाकर दरबार में धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि जन्म जयंती व पुण्य स्मरण दिन किसका मनाते है, प्रतिदिन हजारों नये जन्म लेते है व मृत्यु को प्राप्त होते है, क्या, उनका मनाते है नहीं, जन्मजयंतीयाँ, या स्मृति दिवस उनका ही मनाते है, जिन्होंने अपने जीवन को देश जाती या धर्म के लिये कुर्बान किया हो। आज हम 3 महापुरुषों की जन्म जयंती मना रहे है और एक महापुरुष की पुण्यतिथि। ( 1 ) श्रमण सूर्य , श्रमण याने साधु ( मुनि ) सूर्य याने ( सूरज ) मुनियों में सूर्य के समान थे मरुधरा के महान संत पूज्य श्री मरुधर केशरी – मरुधर ( मारवाड़) में उनकी आवाज शेर की गर्जना की तरह थी। पूरे देश में आवाज गूंजती थी, पाली में शेषमलजी केशर बाई सोलंकी के घर जन्म लिया था माता का वियोग बचपन में हो गया था। भादरा जू...

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