कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने जैन दिवाकर दरबार में धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि आज हमारे आंगन में पर्वाधिराज पर्व पर्युषण आ गये हैं। स्वागत के लिये तैयार हो जाओ परंतु स्वागत कैसे करेंगे आपके घर में मेहमान आते हैं।
जंवाई आदि आते हैं तब कैसे तैयारी करते हैं अच्छा खाना पीना आदि बनाते वैसे करेंगे .ये आठ दिन पर्व के रूप में आये हैं। इन दिनों में ज्यादा से ज्यादा त्याग तपस्या दया दान धर्म ध्यान जप तप के द्वारा ही स्वागत कर सकते हैं।
मुनिश्री ने अन्तगढ़ सूत्र का वांचन मूल पाठ व विविध विवेचन के साथ सुनाते हुवे सत्संग की महिमा का वर्णन करते हुवे कहा कि सत याने (अच्छा) संग याने ( संगत ) अथार्त अच्छे की संगत करना कहा भी है। संगत शोभा पाईये शाह अकबर बेन ” वाही काजल ठीकरी वाही काजल नैन ” जैसे के साथ रहेंगे वैसे ही कहलाते हैं। जैसे शराबी के साथ बैठेंगे तो शराबी कहलायेगे भले शराब नहीं पीते और दूध पीने वाले के साथ बैठेंगे तो अच्छे कहलायेगे भले शराब पीता हो।
संतो के संग में आयेंगे तो धार्मिक कहलायेगे इधर उधर बहुत भटक लिया अब तो धर्म स्थल पर आ जाओ। यहां आयेंगे भगवान की वाणी श्रवण करेंगे संतो के दर्शन करेंगे तो और मुनियों के चरण स्पर्श करेंगे तो शास्त्र श्रवण से कान पवित्र होंगे। दर्शन करने से आंखें पवित्र होगी व चरण स्पर्श करने से पूरा शरीर पवित्र होगा।
अतः जो समय बीत गया वह चला पर जो समय हमारे हाथ में है उसका सदुपयोग करले नाटक खेल तमाशे सिनेमा से आत्मा का कल्याण नहीं होगा। वहाँ तो कर्मों का बंधन ही होगा पर धर्म स्थानक आराधना भवन में आयेगे हमारे पाप कर्म हल्के होंगे जिससे आत्मा जल्दी मोक्ष की ओर अग्रसर हो सकती है।
इन आठ दिनों में हरी लिलोतरी जमीकंद चप्पल जूते रात्रि भोजन सिनेमा होटल आदि का त्याग तपस्या का ज्यादा से लक्ष्य रखें। सामायिक प्रतिक्रमण चोविहार का पूरा पूरा लाभ उठाये जिससे आत्मा ब्लैक से वाइट हो जाये आत्मा का कल्याण होवे।