Share This Post

ज्ञान वाणी

स्वयं प्रभु बनने की है जैन दर्शन की साधना: प्रवीणऋषिजी

स्वयं प्रभु बनने की है जैन दर्शन की साधना: प्रवीणऋषिजी

एएमकेएम में आयोजित धर्मसभा में प्रवचन श्रवण करने के लिए उपस्थित श्रद्धालु

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने चातुर्मास के अवसर पर 14 प्रकार के नियम ग्रहण कर उनका संयमपूर्वक पालन करने के बारे में बताया। हम छोटी-छोटी बातों का संयम रखेंगे तो हमारा शरीर अन्तर से सशक्त बनता है और १४ नियमों को ग्रहण करने से हमारी सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। यदि आपसे नियम टूटे तो उसका मंथन करें और स्वयं अपनी गलती की जिम्मेदारी स्वीकार करें, परिस्थितियों को दोष न दें और उसको पूरा करने का प्रयास करें।

हमारी आत्मा शाश्वत और स्वाभाविक है। इसके होने का कोई कारण नहीं है, यह किसी के द्वारा निर्मित नहीं है। जिसे स्वर्ग, नरक, क्रोध, ज्ञान, अज्ञान, संयम सभी का अनुभव है, जो सभी दिशाओं में भ्रमण करती है- वह मैं हंू, वही मेरी आत्मा है, मैं ही निगोद से चरित्र तक पहुंचा हंू। यह आत्मा का ही सामथ्र्य है कि वह शिखर तक पहुंच सकती है, सर्वसमर्थ और करुणा का सागर बन सकता हंू।

परमात्मा प्रभु महावीर का कहना है कि न्याय-अन्याय सभी करने वाला मैं ही हंू। परमात्मा प्रभु असंयमी, क्रोधी और हत्यारे को भी सुधरने का पाठ पढ़ाते हैं, उसमें दया, करुणा और अहिंसा का प्रकाश भर सकते हैं। छद्मस्थ के पास जल की बंूद जितना ज्ञान होता है लेकिन उनमें सागर जितना अहंकार होता है, वे स्वयं झगड़ते हैं और दूसरों से भी झगड़ा करवाते हैं। यदि परमात्मा के ज्ञान में से एक बंूद जितना भी ज्ञान जिसको प्राप्त हो जाए तो वह सर्वज्ञ बन सकता है।

धर्मसभा में उपस्थित वैज्ञानिक और अनुसंधानकर्ता डॉ. जीवराज जैन ने बताया कि किस प्रकार जैनधर्म के नियम और सूक्ष्म आचार-विचार विज्ञान से भी आगे हैं। जीव के प्रकार, प्रकृति और विज्ञान में उसकी परिभाषा तथा जल पर किए गए अपने शोध के बारे में विस्तार से बताया। परमात्मा प्रभु के बताए गए मार्ग की वैज्ञानिकता विज्ञान की परिभाषा से भी ऊपर है, शाश्वत सत्य है। उन्होंने जिनशासन में विज्ञान समझाए बिना, विज्ञान के लाभों से लाभान्वित कराया है।

गुरु पूर्णिमा और चौमासी पक्खी के अवसर पर सायं 8 से 9.30  बजे तक परिवार भक्ति का कार्यक्रम रखा गया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लेकर गुरु दर्शन और भक्ति का लाभ लिया।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar