चेन्नई. कोडमबाक्कम-वड़पलनी जैन भवन में चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी सुमित्रा ने प्रवचन के पहले दिन सोमवार को कहा कि पुण्य खत्म होने के बाद पाप का उदय होता है। पिछले समय के पुण्य के कार्यो की वजह से अगर कोई पाप करता है तो उसका छीप जाता है।
लेकिन पुण्य का घड़ा फुटते ही पाप का उदय होने लगता है। इसलिए जीवन में बदलाव के लिए सही मार्गो का अनुसरण करने की जरूरत है। आत्मा के चिंतन के लिए दो घड़ी भी काफी है, इससे जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन आ जाता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य को कभी भी धर्म करने के पीछे किसी प्रकार का स्वार्थ नहीं रखना चाहिए। निश्वार्थ भाव से किया गया धर्म फलदाई होता है।
जीवन में बदलाव लाना है तो संतो के जिनवाणी को जीवन में उतारने की कोशिश करें। साध्वी सुप्रिया ने कहा कि सच्चा सुख संसार का सुख होता है यहां रहकर अगर मनुष्य धर्म का पालन कर ले तो उसके जीवन के नौका का पार लग जाता है। सुनने से जीवन में बदलाव आता है। प्रवचन सुन कर पाप, पुण्य और धर्म-अधर्म के बारे में पता चलता है। मनुष्य को पता नहीं होता है कि वह जो कर रहा है वह पाप है या पुण्य है और करता रहता है।
लेकिन जब वह प्रवचन में आकर जिनवाणी का श्रवण करता है तो उसे पाप पुण्य के बारे में अच्छे से पता चलता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य अगर कम बोले तो चल जाएगा लेकिन अगर ज्ञान की कहीं बात चल रही हो तो उसे समय निकाल कर सुन लेना चाहिए। क्या पता कि एक पल में उसके जीवन की नैया पार लग जाए।
उन्होंने कहा कि साधु संतो के मुख से महापुरुषों की वाणी सुनने से जीवन का कल्याण होना संभव है। जिस चीज को सुनने से जीवन का उद्धार होने वाला हो उसे तो जरूर सुनना चाहिए। संत दर्शन का जीवन के अंदर बहुत बड़ा महत्व होता है। संतो का सानिध्य पाकर मनुष्य अपने कर्मो की निर्जरा कर सकता है।
संतो का आगमन सोते हुए को जगाने के लिए होता है। अगर संत आए हैं तो अपनी निंद को छोड़ कर संतो के पास आकर जिनवाणी का श्रवण करना चाहिए। उन्होंने कहा कि संतो के सानिध्य में आकर बैठने भर से जीवन में बदलाव नहीं होगा, बल्कि उनकी वाणी को सुनकर उसे जीवन में उतारने की जरुरत है।
उपर से जागने का नहीं बल्कि अंदर से जागना चाहिए। जब मनुष्य अपनी अंतर्आत्मा से जागेगा तो उसका ध्यान इधर उधर जाने के बजाय धर्म के कार्यो की ओर जाएगा। इससे जीवन का कल्याण होगा।