चेन्नई. साहुकारपेट स्थित जैन भवन में विराजित उपाध्याय प्रवर रवीन्द्र मुनि ने कहा सालों से मंदिर जाने के बाद भी अगर व्यक्ति के जीवन में बदलाव नहीं आता तो उसका मंदिर जाना सफल नहीं हो सकता। सामायिक को सफल करना है तो हमे खुद की जांच करनी होगी, तभी जीवन सफल हो पाएगा।
समस्त प्राणियों के प्रति मानव को मैत्रीभाव रखना चाहिए। स्वयं से ज्यादा दूसरों की चिंता करने को ही मैत्री भाव कहते है। प्रत्येक व्यक्ति कोई न कोई धार्मिक रास्ता अपना कर धर्म में आगे निकलने की कोशिश करता है। लोग सामायिक करते तो है लेकिन सिर्फ ऊपरी मन से। माला फेरने और भगवान का नाम लेने से सामायिक पूरी नहीं होती, इसके लिए बहुत सारे विधि विधान होते हंै जिनसे करने पर ही सामायिक सफल होती है। सामायिक, जाप और तपस्या करने के बाद भी अगर व्यक्ति के जीवन में बदलाव नहीं आता तो समझें सामायिक सफल नहीं हुई। सामायिक करने के बरसों बाद भी अगर व्यक्ति खुद को शुरुआत जगह पर ही पाता है तो उसका यह करना व्यर्थ होगा। समय समय पर विश्लेषण करते रहना चाहिए। जब कोई नादानी में कुछ गलत करता है तो उसे क्षमा किया जा सकता है लेकिन समझने के बाद भी यदि नहीं बदलता तो उसे माफ नहीं किया जाता। साधना के रास्ते पर चलने वालों को खुद को समय समय पर जांचना चाहिए।