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ज्ञान वाणी

 संतानों के लिए माता-पिता एसे ऐसे देव बनें कि उन्हें अन्य देवताओं की याद ही न आए: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

 संतानों के लिए माता-पिता एसे ऐसे देव बनें कि उन्हें अन्य देवताओं की याद ही न आए: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

चेन्नई. रविवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज के प्रवचन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। उपाध्याय प्रवर ने जैनोलोजी प्रैक्टिकल लाइफ में अन्तर की शक्ति को जाग्रत करने के लिए आत्मा के तीसरे तत्त्व चरित्र के बाद में बताया। क्रिया, व्यवहार, आचार सामने दिखता है लेकिन जरूरी नहीं कि जो क्रिया वह कर रहा है उसकी अनुभूति उसे हो रही हो।

अनुभूति और अहसास को चरित्र कहते हैं। क्रिया, व्यवहार और आचार से पृथक होता है। कई बार अच्छी क्रिया करने के बाद भी समाधान नहीं होता। आचरण करने के बाद भी उसका फल नहीं मिलता। क्योंकि जैसा चरित्र होता है वैसा ही फल मिलता है। क्रिया, आचार और व्यवहार तो सिखाया जा सकता है लेकिन अहसास और चरित्र नहीं सिखाया जा सकता। पक्षी भी रटारटाया बोल सकते हैं, लेकिन वह उनके चरित्र और भावना में नहीं आता। यदि चरित्र अच्छा होने पर क्रिया, आचार और व्यवहार अच्छा होगा। हम बाहरी रूप से धर्म करते हैं लेकिन उसे अपनी भावनाओं में नहीं उतार पाते जिससे वह आपका चरित्र नहीं बन पाता।

चरित्र हमारे अन्तर से जन्मता है इसे थोपा नहीं जा सकता और जो अन्दर से जन्मता है उसमें ब्रेक नहीं होता। अनुशासन को आप कभी भी भंग कर सकते हो लेकिन अपने चरित्र के विपरीत आप कभी नहीं जा सकते। वह चरित्र ही आपको तिराता है। अनुभूति करना ही हमारी आत्मा का गुण है और यह मनुष्य गति को मिला हुआ वरदान है। जहां चेतना है वहां अनुभूति है, बिना अनुभूति के हम जो भी करते हैं वह जड़ क्रिया है।

महावीर ने यही कहा है कि जिसे आप कर रहे हो उसी में तन्मय हो जाओ, डूब जाओ। फिर देखो आपमें अपार ऊर्जा जाग्रत हो जाएगी।

कई बार किताबों को बार-बार पढऩे पर भी याद नहीं रहता। क्योंकि उसमें हमारा ध्यान नहीं रहता। उसमें डूबकर अध्ययन करोगे तो आप कभी-कभी भी भूल नहीं पाओगे। जहां तन है वहां अपने मन को रखें और जहां मन है वहां तन को ले जाओ। जहां क्रिया, वहां भाव आ जाए तो चरित्र में आनन्द और अनूभूति होती है। जब तपस्या में डूबता जाता है और भारी नहीं लगती। बिना अनुभूति जो भी किया जाता है वह चरित्र नहीं, केवल ड्रामा होता है।

प्रकृति में कभी किसी की प्रतिलिपि नहीं होती, स्वयं को जांचें कि आप बनावटी हैं या प्राकृतिक। हमेशा सिंगल, माइंड, सिंगल एक्शन और सिंगल करेक्टर रहें। डिस्कवरी योर सेल्फ के कार्यक्रम में यही सिखाया जाता है। अपने अन्तर के मालिक आप स्वयं बनेंगे तो बाहर की कोई भी चीजें आपको प्रभावित नहीं कर पाएगी। हम काम से नहीं थकते। जब काम के साथ ईमानदार नहीं होते हैं तब हमें थकान महसूस होती है। जो कार्य कर रहें हैं उसके साथ ईमानदारी से रहें, स्वयं के साथ कभी बेवफा मत बनो, इससे आपमें अपार शक्ति का सामथ्र्य जाग्रत होगा।

मातृ-पितृ पूजन का विशेष कार्यक्रम

उपाध्याय प्रवर ने नवकार महामंत्र के उच्चारण के साथ मातृ-पितृ पूजन के विशेष कार्यक्रम में कहा कि भगवान महावीर वही बन सकता है जिसे गर्भ में रहते मां को पीड़ा न हो इसके लिए अपनी प्राकृतिक क्रिया को रोक दे। जब गर्भ में रहते हुए बच्चा हिलता डुलता है तो मां को कष्ट मिलता है, लेकिन महावीर को आश्चर्य होता है कि जब वे कष्ट दे रहे हैं तो उनकी मां हंसती है और जब नही दे रहे तो वे रोने लगती है। ऐसी महावीर की मां त्रिशला ही हो सकती है। महावीर और उनकी मां से प्रेरणा ग्रहण करने वाले ही महावीर के जन्मदाता बनते हैं। जो अपने स्वयं के बच्चों से परेशान होते हैं वे जिंदगीभर परेशान ही रहते हैं। मां-बाप और संतानें एक-दूसरे की भावनाओं को समझें और अनुभव करें। जब बच्चे अनजाने में कष्ट दें तो मां-बाप को उसमें भी खुश रहना चाहिए और संतानें भी ऐसा आचरण करें कि अपने माता-पिता तनिक भी कष्ट न हो। बच्चों की गलतियां अनदेखा करने वाला माता-पिता का आंचल जब गायब हो जाता है तो वह गुनाहगार बन जाता है। अपने बच्चों की कभी भी शिकायत न करें। शिकायत का छिपा हुआ अर्थ है उसको बददुआ देना। अपने बच्चों के लिए ऐसे देव बन जाएं कि उन्हें किसी दूसरे देव की उन्हें याद ही न आए। आज का दिन मां-बाप और बच्चों के बीच एक प्रकार की संवत्सरी के रूप में जानें और एक दूसरे के रिश्तों को समझ लें तो भावनाएं भी श्रद्धा में बदल जाएगी।

कार्यक्रम में आए हुए बच्चों ने अपने माता-पिता के चरण धोकर वंदना की और अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगी तथा माता-पिता ने भी अपने बच्चों के प्रति हमेशा देवरूप क्षमा करने का संकल्प लिया। तीर्थेशऋषिजी ने माता-पिता के प्रति अनेक भावपूर्ण भजन श्रवण कराए जिनसे उपस्थित अभिभावक और बच्चे सभी भाव-विभोर हो गए। उड़ान टीम, हैदराबाद ने ‘‘एक फरिश्ते की कहानी उड़ान की जुबानी’’ प्रेरणास्पद नाटिका और निशा गांधी ने गुरु-गीतिका प्रस्तुत की। शांतिलाल सिंघवी ने चातुर्मास समिति की ओर से उपस्थित सभी जनों एवं एएमकेएम यूथ एसोसिएशन का आभार व्यक्त किया।

26 से 28 सितंबर को 72 घंटे का अर्हम गर्भ संस्कार शिविर, 30 सितंबर को घर-घर में नवकार कलश स्थापना का कार्यक्रम संपन्न होगा।

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