एसएस जैन संघ ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि विकारों की पहचान सम्यकत्व के लक्षण से होती है। यही श्रद्धा के लक्षण मोक्ष का लर्निंग लाइसेंस है। हमारी श्रद्धा गुरु, देव और धर्म पर मजबूत होनी चाहिए। व्यवहार में विचार करें तो विश्वास से तैरते हैं तो किनारे भी मिलते हैं। इसके सामने स्वर्ग की गद्दी भी हिल जाती है। शरीर में जो स्थान रीढ़ की हड्डी का है वही स्थान जीवन में श्रद्धा का है। जैसे दांतों के बीच जिव्हा सुरक्षित रहती है वैसे ही संसार में समदृष्टि आत्मा भी सावधान रहती है।
जब तक आदमी समझ नहीं पकड़ता वहां तक ही जीवन में अंधेरा है। जैसे बालक न जानकर बेर को पकड़ क र कीमती रत्न छोड़ देता है वैसे ही मिथ्यावी भी समेकित रत्न को छोडक़र भोगों में लिप्त हो जाता है। शरीर की हड्डी टूटने पर एक्सरे से, सिर में गांठ होने पर सीटी स्कैन कर और शरीर की गांठ का सोनोग्राफी से निदान किया जाता है।
आगम की वाणी में कामदेव श्रावक और इतिहास में गुरु नानकदेव के पुत्रों का नाम अमर हो गया है। हमारी श्रद्धा बर्फ जैसी न होकर हिमालय जैसी दृढ़ होनी चाहिए। तन का रोग, मन का लोभ और इंद्रियों का लोभ हमारी समेकित दृष्टि को नष्ट कर देता है। प्रेम सभी से करो, विश्वास थोड़े से करो और वैर किसी से न करो। इस अवसर पर सुप्रतिभा ने अंतगड़ सूत्र का वांचन किया। अपूर्वा ने श्रद्धा बिना भक्ति अधूरी इस पर गीतिका प्रस्तुत की।