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ज्ञान वाणी

शुभ योग आश्रव क्यों?

तत्त्व – दर्शन

🔹 तत्त्व वर्गीकरण या तत्त्व के प्रकार

👉जैन दर्शन में नवतत्त्व माने गये हैं – जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष।

🔅 आश्रव

यहां आश्रव के बीस भेदों का विवेचन किया जा रहा है :

✨5. योग आश्रव

🔹शुभ योग आश्रव क्यों?

👉 शुभ योग से दो कार्य होते हैं- शुभ का बंध और अशुभ कर्म की निर्जरा। शुभ कर्म का बंध होता है, इसलिए वह शुभ-योग आश्रव कहलाता है और कर्मों का क्षय होता है, इसलिए उसे निर्जरा कहा जाता है। वस्तुस्थिति ही ऐसी है कि शुभ-योग अथवा शुभ-अध्यवसाय के बिना निर्जरा भी नहीं हो सकती और पुण्य का बंध भी नहीं हो सकता।

आत्मा की प्रवृत्ति दो प्रकार की होती है- बाह्य और आभ्यन्तर। जो बाह्य प्रवृत्ति होती है, उसे योग कहते हैं और जो आभ्यन्तर प्रवृत्ति होती है, उसे अध्यवसाय कहते हैं। योग तथा अध्यवसाय-ये दोनों दो-दो प्रकार के होते हैं-शुभ और अशुभ। इनकी अशुभ प्रवृत्ति से पाप-कर्म बंधता है और आत्मा मलिन होती है तथा शुभ प्रवृत्ति से निर्जरा होती है, आत्मा उज्ज्वल होती है और पुण्य-कर्म बन्धता है।

एक ही कारण से दो काम कैसे हो सकते हैं, इसका शास्त्रीय न्याय यह है कि शुभ योग मोहनीय कर्म के क्षय, उपशम या क्षयोपशम से तथा शुभ-नाम-कर्म के उदय से निष्पन्न होता है। शुभ योग क्षय, क्षयोपशम या उपशम से निष्पन्न होता है, इसलिए उस (शुभ योग) से निर्जरा होती है और वह उदय से भी निष्पन्न होता है, इसलिए उससे शुभ कर्म बंधते हैं, अतः निर्जरा और पुण्य-बंध का कारण जो व्यावहारिक दृष्टि से एक ही जान पड़ता है, तात्त्विक दृष्टि से एक नहीं है।

क्रमशः ………..

✒ लिखने में कोई गलती हुई हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
विकास जैन

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