चेन्नई. वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में जयधुरंधरमुनि ने कहा सुखी परिवार के लिए सहयोग, समर्पण, सामंजस्यता, सहनशीलता एवं स्नेह गुण होना जरूरी है। आपसी सहयोग से बड़े से बड़े कार्य भी सरलता से पूरा हो जाता है । सेवा को भार नहीं उपहार समझा जाना चाहिए।
जो दूसरे का सहयोग करता है उसे ही सहयोग प्राप्त होता है। जहां समर्पण है वहां समस्त समस्याओं का स्वत: ही समाधान हो जाता है। हर व्यक्ति को अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित रहना चाहिए। परिवार में सभी सदस्यों का आपस में सामंजस्य होना चाहिए। सामंजस्य बनाए रखने के लिए दूसरों को बदलने का प्रयत्न करने के बजाय स्वयं के स्वभाव में बदलाव लाना होगा।
पहले छोटे घरों में भी अनेक लोग एक साथ रह जाते थे, जबकि आज घर तो बड़े हो गए लेकिन दिल छोटे हो गए हैं। संयुक्त परिवार के आध्यात्मिक, भौतिक, आर्थिक, व्यावहारिक लाभ भी बताए गए हैं। सहनशीलता से व्यक्ति महान बन जाता है। इंसान स्नेह का भूखा होता है। भय, क्रोध, धमकी से नहीं स्नेह से काम करवाना आसान हो जाता है। प्रेम जोडऩे का काम करता है। जिस प्रकार साबुन कपड़े को उज्जवल बनाता है, उसी प्रकार प्रेम हृदय को उज्जवल बनाता है।
जयपुरंदर मुनि ने कहा आज के युग में हर व्यक्ति सुख एवं शांति चाहता है। आज सुख-सुविधा के साधन तो बढ़ते और शांति घटती जा रही है । सुखी होना पुण्यवानी का लक्षण होता है। शारीरिक सुख से ज्यादा मानसिक सुख होना जरूरी है। घर परिवार में आपसी सामंजस्य एवं शांति होने पर ही व्यक्ति सुखी बन सकता है अन्यथा परिवार की चिंता एवं तनाव व्यक्ति को मानसिक रूप से दुखी बनाते हुए डिप्रेशन की ओर ले जाता है।
प्रात:काल अणुप्पेहा ध्यान कक्षा में युवाओं को स्मृति वृद्धि ध्यान का अभ्यास करवाया गया। बच्चों के लिए जयमल जैन आध्यात्मिक ज्ञान ध्यान संस्कार शिविर का भी आयोजन हुआ जिसमें 175 शिविरार्थियों ने हिस्सा लिया।
श्री जयमल जैन श्रावक संघ के प्रचार प्रसार चेयरमैेन ज्ञानचन्द कोठारी ने बताया कि मुनि डॉ. पदमचंद्र के 56वें जन्म दिवस पर 56 युवाओं ने सामूहिक भिक्षु दया करते हुए सामयिक साधना, धर्म आराधना की ।