‘व्यक्तित्व विकास के लिए जिन गुणों को अपेक्षित माना जाता है, उनमें एक विशिष्ट गुण है- धैर्य। मन पर अनुशासन करने वाली अथवा मन को संतुलित करने वाली बुद्धि का नाम है- धैर्य। धैर्य संपन्न व्यक्ति छोटी-बड़ी किसी भी स्थिति से प्रभावित हुए बिना अपने कर्तव्यपथ पर अग्रसर रहता है। लक्ष्य की प्राप्ति में विलम्ब होने पर भी वह विचलित नहीं होता, शांत भाव से आगे बढ़ता रहता है।’ ये बातें तेरापंथ धर्म संघ की अष्टम असाधारण साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने कही। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की ओर से असाधारण साध्वी प्रमुखाश्री के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित ऑनलाइन समागम के दौरान उन्होंने ये बातें कहीं।
सफल जीवन के गुर सिखाते हुए साध्वी प्रमुखा ने कहा कि धैर्य का संबंध न ज्ञान के साथ है, न आचरण के साथ। कछ व्यक्ति विशिष्ट ज्ञान सम्पन्न होने पर भी साधारण-सी प्रतिकलता की स्थिति में अधीर हो जाते हैं। कुछ व्यक्तियों का चरित्रबल पृष्ट होता है। उनके आचरण पर किसी को अंगुली उठाने का मौका नहीं मिलता, पर वे विषम परिस्थितियों में शीघ्र ही अपना संतुलन खो देते हैं। इस दृष्टि से यह माना जा सकता है कि धैर्य का विकास होने पर व्यक्तित्व के अन्य पहलू अपने आप पुष्ट हो जाते हैं।
आत्महत्या अधीरता का परिणाम, सफलता का शॉर्टकट नहीं
साध्वी प्रमुखाश्रीजी ने कहा कि कुछ मनुष्य शार्टकट मेथड से सफलता पाना चाहते हैं। उसके लिए उचित-अनुचित संसाधनों का उपयोग करने में भी कोई विचार नहीं करते। इसके बावजूद सफलता न मिले या उसकी प्राप्ति में देरी हो जाए, तो निराश हो जाते हैं। उनमें से कुछ व्यक्ति आत्महत्या भी कर लेते हैं। ये अधीरता के परिणाम हैं। धैर्य संपन्न व्यक्ति जानता है कि बीज को वृक्ष बनने में कितना समय लगता है। पानी को बर्फ बनने में समय लगता है। प्रवृत्ति की निष्पत्ति समयसाध्य होती है।
इन अनुभवों के आधार पर वह सफलता के लिए उचित समय की प्रतीक्षा करता है, किन्तु निराश होकर अपने लक्ष्य की दिशा नहीं बदलता और कोई गलत काम भी नहीं करता। तेरापंथ महिला मंडल की स्थानीय अध्यक्षा श्रीमती पुष्पा हिरण ने जानकारी देते हुए बताया कि साध्वी प्रमुखाश्री गत पचास वर्षों से नारी चेतना को जागृत करने, स्वस्थ परिवार स्वस्थ समाज के निर्माण का अद्भुत कार्य कर रही हैं।
स्वरुप चन्द दाँती
प्रचार प्रसार प्रभारी
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, चेन्नई