चेन्नई. अरनावरम के जैन दादावाड़ी विराजित साध्वी महाप्रज्ञा ने कहा कि जिस प्रकार घर बनाने के लिए ईंट की जरूरत होती है उसी प्रकार जीवन रूपी घर बनाने के लिए विनय रूपी ईंट की आवश््यकता पड़ती है।
मनुष्य का अहंकार उसके जीवन को बर्बाद कर देता है इसलिए मोक्ष की मंजिल तक पहुंचने के लिए अहंकार की कार छोडक़र विनम्रता के विमान पर सवार होना चाहिए।
उन्होंने विनय का वर्गीकरण करते हुए कहा कि व्यक्ति स्वार्थ के वशीभूत होकर भी विनयशील बन जाता है और निस्वार्थ भाव से भी। मोक्ष की प्राप्ति के लिए निस्वार्थ विनय का होना जरूरी है। निस्वार्थ विनय से की गई भक्ति जीवन को आनंद से भर देती है।