बेंगलूरू। वीवीपुरम स्थित महावीर धर्मशाला में चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी डॉ. श्री कुमुदलताजी म.सा. ने सोमवार को प्रात:धर्मसभा में श्रावक के बारह व्रतों में से उसके सातवें व्रत के अंतर्गत बताए पंद्रह कर्मोंदानों का विस्तार से विवेचना की।
गुरुदिवाकर केवल कमला वर्षावास समिति के तत्वावधान में उन्होंने वाणी पर संयम रखने की बात करते हुए कहा कि पांच इंद्रियों में नयन, कान, नाक, स्पर्श, इंद्रिय का एक-एक कार्य मात्र देखने, सुनने, सूंघने, स्पर्श करने तक ही सीमित है, लेकिन रसनेंद्रिय-जीभ के दो कार्य है बोलना और खाना।
अगर वाणी पर संयम रखा गया होता तो इतिहास में लाखों जनसंहार का प्रतीक बना ‘महाभारत’ नहीं होता और ना लिखा जाता। उन्होंने कहा कि व्यक्ति अपने वचनों में मधुरता, मीठे वचनों का प्रयोग करके दुनिया में लोकप्रिय, सर्वप्रिय राम, कृष्ण, महावीर, यीशु बन सकते हैं।
उन्होंने तपस्विनी श्राविका श्रीमती आशा महेंद्र बाफना (यशवंतपुर) के मासखमण की सुदीर्घ तपस्या करने पर उनके तप की मंगल अनुमोदना की। इससे पूर्व साध्वीश्री महाप्रज्ञाजी म.सा. ने कहा कि मधुर मीठे वचन, सात्विक आचरण मानव की अनमोल सम्पत्ति है। संसार के जितने भी कार्य है वे वाणी से ही चलते हैं।
उन्होंने कहा कि संसार में कड़वे कटुवचन बोलने वाला सब जगह अपयश का ही पात्र बनता है और मीठे वचन बोलने वाला सब जगह आदर-सम्मान का पात्र बनता है। साध्वीश्री पदमकीर्तिजी म.सा. ने वर्षावास समिति के तत्वावधान में आगामी 25 अगस्त, रविवार को भिक्षु दया दिवस आराधना की विस्तार से जानकारी दी।
साध्वीश्री राजकीर्तिजी म.सा ने गीतिका प्रस्तुत की। समिति के महामंत्री चेतन दरडा ने बताया कि इस अवसर पर चैन्नई, जोधपुर, विजयवाड़ा, सुल्लुरपेट, सिंधनुर, तिरुवल्लूर व गंगावती सहित स्थानीय उपनगरों से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने धर्म सभा में शिरकत की।
दरड़ा ने बताया कि अतिथियों व मासखमण तपस्वियों तथा ‘जय जिनेंद्र’ प्रतियोगिता के विजेताओं को वर्षावास समिति के चेयरमैन किरण चंद मरलेचा, धर्मेंद्र मरलेचा, पन्नालाल कोठारी, ज्ञानचंद मुथा, महावीरचंद धारीवाल, राजेश गोलछा व रंजना गोलेछा आदि समिति पदाधिकारियों, युवा शाखा व महिला शाखा द्वारा सम्मान किया गया।
कार्यक्रम का संचालन रोशनलाल बाफना ने किया। सभी का आभार समिति के सहमंत्री अशोक रांका ने जताया।