पुदुचेरी. मुनि सौम्यसागर ने कहा कि कर्म की निर्जरा करने के लिए कभी मत सोचो। हर पल अपने कार्य में ही ध्यान दो। मुनियों से महाव्रत और संयम सीखो। मरण और मरता की तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि मरण तो संयम से जुड़ा है जैसे साधु का होता है।
मरता का मतलब तो साधारण मरण से है जो कि बिना संयम- व्रत से है। जब अटूट श्रद्धा हमारे मन में बैठ जाती है तभी बड़ी से बड़ी मुश्किल भी पल भर में लुप्त होती दिखती है।
मुनि अरिजीत सागर ने विनय भावना को विस्तार से बताते हुए कहा कि भक्ति में जितना झुकोगे उतना ही आगे बढ़ोगे। इस संदर्भ में उन्होंने रावण का दृष्टांत बताया। जिसमें विनय भाव के कारण राम,रावण से भी विद्या सीखते है।