चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय ने कहा नागिन जिस तरह लोगों के प्राण हर लेती है वैसे ही माया विश्वास को हर लेती है, विश्वास मिटाकर वह हमारे मित्रों की संख्या घटा देती है।
जिस प्रकार सर्प अपनी केंचुली को एक बार छोउ़कर उस ओर मुड़कर भी नहीं देखता, उसी प्रकार सरल ज्ञानी पुरुष भी शुभ गति को रोकने वाली ऐसी माया की ओर मुड़कर नहीं देखता। सरल प्राणी माया की छाया से अपनी काया को बचाकर चलता है। माया की छाया हमारे सद्गुणों को समाप्त करके दुर्गुण भर देती है।
जिस प्रकार बगुला एक टांग पर खड़ा रहकर ध्यान का ढोंग करके मौका पाकर मछली को पकड़ लेता है वैसे ही कपटी-धूर्त-मायावी अपनी माया का जाल बिछाकर सब लोगों को ठग लेता है और मित्रता समाप्त कर देता है।
जंगल में रहने वाली सर्पिणी के काटने पर व्यक्ति मूच्छित हो जाता है लेकिन यहां आश्चर्य की बात यह है कि माया रूपी नागिन के डस लेने पर ठग इंसान कमल की तरह मुस्कराता हुआ मीठा मीठा बोल कर लोगों सम्मोहित कर लेता है।
माया नरक की खाई है तो सरलता स्वर्ग की सीढ़ी। 15 अगस्त को संतों के सान्निध्य में स्वतंत्रता-दिवस के साथ ही भगवान नेमिनाथ का जन्मकल्याणक एवं संयम उपकरण वंदनावली कार्यक्रम होगा।